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समरसिंह
समरसिंहने नम्रतापूर्वक कहा कि श्री संघ की आज्ञा मुझे मान्य है क्योंकि श्री संघ के आदेश को तीर्थकर भी मान्य समझते हैं तत्पश्चात् श्री संघ के प्रदेश को शिरोधार्य कर हमारे चरितनायकने घर आकर सारा वृत्तान्त अपने पूज्य पिता श्री देसलशाह को सुनाया । धर्मिष्ठ देसलशाह अपने सुपुत्र समरसिंह सहित श्री सिद्धज़ूरिजी के सम्मुख पहुँचे और विधिपूर्वक वंदना कर प्रार्थना की कि, आप की कृपा से हमारे बहुत से मनोरथ सफल हुए हैं । हमारी इच्छा है कि श्री तीर्थाधिराज शत्रुंजय का उद्धार हमारे हाथ से शीघ्र हो जावे । हमारी अभिलाषा है कि आप एक मुनि को हमारे कार्य को विधिपूर्वक सम्पादन कराने के लिये सहायक की तरह कृपाकर अवश्य भेजिये ।
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श्री सिद्धसूरि के शिष्यरत्न पं. मदनमुनि गुरु वचन को शिरोधार्य कर शीघ्र आरास पहुँच गये | श्री देशलशाह की 1 आज्ञा से हमारे चरितनायकने अपने सेवकों को एक पत्र देकर खान के मालिक के पास इस लिये भेजा कि वे खान के पति की आज्ञा पाकर खान में से एक फलही जिनबिम्ब बनाने के लिये ले आवें । '
१ श्री मात्मानंद सभा भावनगरसे प्रकाशित श्री जिनविजय जो विरचित 'शत्रुप्रथ तीर्मोद्धार प्रबंध' नामक ग्रंथ में उपोद्घात के पृष्ट ३२ वें में उल्लेख है कि, बादशाह के अधिकार में सम्माण संगमर्मर पाधाय की खानें थी जिनमें
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से बहुत बढ़िया भाँति का पत्थर निकला था । खमराशाहने वहाँस पत्थर लेने
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