________________
टपकेशगच्छ - परिचय |
९३
दिखाई पड़े | जब राजा को इस बात का पता पड़ी कि इष्ट के बल से सोमक को कितनी बड़ी सहायता मिली है । राजा की श्रद्धा जैनधर्म के प्रति खूब बड़ी । राजाने तुरन्त सोमक को मुक्त कर दिया । सोमक ने बन्दीगृह के बाहर आकर विचार किया कि अहा ! गुरुवर्य के नाम के स्मरण में कितना गुण भरा है | अतः मैं सब से पहले इन्हीं का दर्शन करूंगा । चूँकि आचार्य प्रवर उस समय भड़चनगर में विराजमान थे अतः सोमक वहां पहुंचा । जिस समय सोमक उपाश्रय में पहुंचता है क्या देखता है कि अन्य सारे साधु भिक्षार्थ नगर में गये हुए हैं और आचार्य श्री एकान्त में बैठे हुए हैं। उन के पास में एक युवती स्त्री को बैठी हुई देख कर सोमक के मन में शंका उत्पन्न हुई । उसने विचार किया कि जिस के नाम को मैं प्रातःस्मरणीय समझता था वह सब बात मिथ्या सिद्ध हुई । अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी बंधन से मुक्ति का कारण यह आचार्य नहीं किन्तु मेरे पुण्य हैं । ये श्राचार्य तो एकान्त में युवा स्त्री के पास बैठे हैं ।
ऐसा सोचते ही वह धम से धराशायी हुआ और उस के मुख से रक्त-धारा प्रवाहित होने लगी । इतने ही में अन्य साधु भिक्षा लेकर आये उन्होंने सोमक की यह दशा देख कर श्राचार्य श्रीका ध्यान इस ओर आकर्षित किया । आचार्यने कारण पूछा तो देवीने उत्तर दिया कि इस आदमी के विचार ही इस की दुर्दशा के कारण हैं । सूरिजी सब बात समझ गये तथापि कहने लगे कि हे देवी, इस व्यक्ति को दुःख से बचाओ । देवीने कहा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com