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________________ उपकेशगच्छ-परिचय । और मूर्तियों तोड़ने । नगर में चारों ओर मार-पात और लूटखसोट मच गई। मन्दिर और मूर्तियों के रक्षार्थ उभय नियुक्त मुनियोंने अपने प्राणोंका बलिदान दिया। बिजली की तरह शीघ्र ही यह समाचार प्राचार्यश्री के कानों तक पहुँचा तो वे अपने साधु-समुदाय सहित मन्दिर और मूर्तियों के रक्षणार्थ तुरन्त मुग्धपुर में पहुँचे । बहुतसे साधु और श्रावक गुप्ततया मूर्तियों उठा उठाकर ले गये परन्तु इस घमसान युद्ध में अनेक कल भी हुए। और मन्दिर मूर्तियों के रक्षणार्थ रहे हुए आचार्य श्री कतिपय मुनियों सहित कारावास में डाल दिये गए। यद्यपि आपश्री अनेक विद्याओं के पारगामी थे तथापि भवितव्य को कोई मिटा नहीं सकता । एक जैनी को म्लेच्छोंने बरजोरी पकड़कर म्लेच्छ बना लिया था। उसकी गुप्त सहायतासे आचार्य श्री किसी युक्तिद्वारा बन्दीगृहसे विमुक्त हुए । अपने धर्मका आधारभूत मन्दिर और मूर्तियों की रक्षाके हित अपने प्राणों को निछावर करनेवाले साधु और श्रावकों को कोटिशः धन्यवाद दिये ! उपसर्गकी शान्तिके पश्चात् आचार्य श्री अपने मुनि समुदाय को साथ लेकर मुग्धपुरसे प्रस्थान कर षट्कूपनगर पधारे। वहाँ आपने उपदेश देकर ११ श्रावकों को दीक्षित किया । १ प्रतिमा स्थाधृताः केपि मारिताः केऽपि साधवाः । सूरि वंदि स्थित श्राहो म्लेच्छी भूतोप्पमोच्यत् ॥ २ दत्वा सह स्व पुरुषांन षट् कूप पुरे प्रभुः । प्रापयन्च सुखे नैव भाग्यंज्जागर्तिय भृणां ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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