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________________ sexo0OOOOOOOOOOOOcg हूँ तृतीय अध्याय Sex:0000000000OOOZoooooz __उपकेशगच्छ का संक्षिप्त परिचय । रम पुनीत भवतारक श्री शत्रुजय महातीर्थ के पंद्रहवे उद्धारक साहसी दानवीर समरसिंहके पूर्वजों का संक्षिप्त र वर्णन पाठक पिछले अध्याय में पढ़चुके हैं। इस उद्धारको करवाने का सौभाग्य हमारे चरितनायकको आचार्य श्री सिद्धसूरिकी कृपासे ही मिला था अतः इस अध्याय में प्राचार्यश्री के गच्छ का संक्षिप्त परिचय पाठकों के सम्मुख रखना असंगत नहीं होगा। जगत्पूज्य विश्वविख्यात वर्तमान चौवीसीके तेवीसवे तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ भगवान ईसा के लगभग ८०० वर्ष पहले हुए हैं। ये महा प्रतापशानी थे | परहित साधनकी भावनाएँ सदा इनके चित्तमें बसी रहती थीं । इन्होंने पूर्ण आत्मबल प्राप्त किया था । कैवल्य लाभ कर भगवान्ने संसारके असंख्य प्राणियों को सत्य, संयम और अहिंसाके मार्गपर लगाया-उन्हें दुःखोंसे छुड़ाया। इनके महान 'महिंसा-धर्म' के मोके नीचे असंख्य लोगोंने परम -"अहिंसा परमोधर्मः " इस उदार सिद्धान्तने ब्राह्मण-धर्मपर चिर. स्मरणीय छाप (मोहर) मारी है।मा-यागादिकोंमें पशुषों का बप होकर जो ‘यवार्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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