________________
रेवती-दान-समालोचना
७५
-
इसकी छाल तिक्त और कठिनता से पचने वाली होती है। वह वात, कृमि और कफ को नष्ट करती है। उसका गुदा स्वादु, शीतल, गुरु, स्निग्ध, वायु और पित्त को जीतने वाला है।
शंका-कुक्कुटो शब्द का अर्थ बिजौरा हुआ, लेकिन यह सिद्ध नहीं हुआ कि कुक्कुट शब्द का अर्थ भी बिजौरा है।
समाधान-कोष के बिना भी आप्त-वाक्य आदि से शब्दार्थ का बोध होता है। यह पहले ही दिखाया जा चुका है कि कुक्कुट शब्द से टीकाकार का आशय बिजौरे से ही है, जिसका दूसरा नाम मातुलुङ्ग भी है। वह इस प्रकार कुक्कुट मांसक-बीजपूरकम् (भग. आगयो.. समिति ६९१ पृष्ठ)
इस प्रकार टीकाकार के मत के अनुसार कुक्कुट शब्द भी बीजपूर का वाचक है। यहाँ कुक्कुट शब्द से तीन वनस्पतियों का अर्थ होता है, उनमें से इस प्रकरण में विशेष रूप से जिसकी उपयोगीता है, वह बताते हैं । सुनिषण्णा नामक शितिवार शाक दाह-ज्वर का नाशक होता है: इसलिए वह इस प्रसंग में उपयोगी है, तथापि यदि यह अर्थ लिया जाय तो मांस शब्द व्यर्थ हो जाता है। क्योंकि फल के गूदे को यहाँ मांस शब्द से कहा है मगर शितिवार के फल वैसे (शूदेदार) नहीं होते दुसरा अर्थ शाल्मलि (सेमल) है। सेमल के फल में गूदा भी होता है मगर वह इस प्रकरण में उपयोगी नहीं है क्योंकि वह पित्त-दाह आदि का नाशक नहीं होता। अब रह गया बिजौरा, सो उसके फलों में गूदा भी होता है। और वह पित्त आदि रोगों का निवारग भी करता है,. इस कारण वही सब प्रकार से उपयुक्त है। यही कारण है कि प्रकरग के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com