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[ ९४ ] मालूम हो जायगा और वृत्ति के आशय सममने में भी किसी प्रकार की अडचन प्रतीत न होगी।
समालोचना के दूसरे पैराग्राफ में पंडितजो ने लिखा है कि "किन्तु उसके घर मार्जार के लिये जो वासी (रातभर रक्खा हुआ) कुक्कुट मांस है इत्यादि ।" ___इसमें मार्जार के लिए यह चतुर्थी विभक्तिका अर्थ पंडितजी ने कहां से लिया । रेवतीदान समालोचना में तो कहां भी मार्जार के लिए वासी रक्खा हुआ ऐसा अर्थ नहीं किया ! इस प्रकार स्वयम मनः कल्पित अर्थ लिखने की पंडितजी के लिए क्या आवश्यकता प्रतीत हुई ? वास्तव में तो टीका में ही बताया गया है कि, यह शब्दार्थ मात्र है भावार्थ आगे सष्ट होगा। यदि पंडितजी को समालोचना ही करना थी तो प्रथम निबन्ध में लिखा हुआ उक्तः का निश्चित भावार्थ देखने के पश्चात् समालोचना करना चाहिये था । अपूर्ण समालोचना करके उक्त वाक्य का विपरीत अर्थ कर पाठकों को शंकाशोल बनाने का प्रयत्न नहीं करना था । मार्जार और कडए इन शब्दों का अर्थ रेवतीदान समालोचना के ब्यालीसवें और तेतालीसवें श्लोक में स्पष्ट दिखला दिया गया है । पाठक वर्ग तथा पंडितजी उस अर्थ को वहां से देख ले और उसी के अनुसार चतुर्थी समास के स्थान पर यदि तृतीया तत्पुरुष अर्थानुसन्धान करे तो श्रेष्ट है।
( 'जैन प्रकाश' से उद्धत)
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