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________________ [ ८८ ] जाता है। छठी आशंका में पंडितजी लिखते हैं कि "सबसे बड़ी आपत्ति इस विषय में यह है कि भगवान महावीर स्वामी ने अपने योग्य भोजन लाने के लिये सिंह साधु को जिस रेवतीगाथा पत्नि के घर भेजा, वह मद्य पीने वाली तथा मांस भक्षण करनेवाली थी। उपासक दशांग सूत्र के आठवें अध्याय के २४०-२४२२४४ वें सूत्र के अनुसार उसका मलिन आचरण इस योग्य सिद्ध नहीं होता कि उसके घर साधारण गृहस्थ-जैन-के खाने योग्य भो आहार मिल सके। उसने जब विष-शस्त्रों द्वारा अपनी १२ सौतों को मार दिया था तथा मद्य, मांस, मधु खान पान में लीन रहती थी। श्रेणिक राजा की वध निषेध की आज्ञा रहने पर भी वह अपने पिता के घर से बछड़े मरवाकर मँगा लिया करती थी। तब उसके घर कबूतर मुर्गे का मांस होना सरल संभव है । यदि वह मांस भक्षग न करती होती तब तो कपोत, कुक्कुट शब्द का अर्थ वनस्पति किसी प्रकार किया भी जाता। मांस लोलुपी के घर सीधे सरल मांस आदि शब्दों का अर्थ वनस्पति रूप करना ठीक नहीं।" इसमें पंडितजी ने सिंह मुनि को दान देनेवाली रेवती को उपासक दशा में वर्णन की हुई रेवती मान ली है। यह पंडितजी की बड़ी भूल है। पंडितजी का कर्तव्य था कि दूसरों की त्रुटि को दिखाने के पहिले रेवती से संबंध रखने वाले दोनों पाठों को भली भाँति विचारते हुये पूर्वापर सम्बन्ध को अच्छी तरह से हृदयंगम कर लेते जिससे कि यह अज्ञानान्धकारावृत न रहता कि दोनों पाठों में आई हुई रेवती एक नहीं बल्कि पृथक २ हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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