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( ८७ ) ४[प्रश्न ] धर्मसागर उपाध्याय के ग्रंथों में श्रागमविरुद्ध अनेक कदाग्रह वचनों को तथा द्वेष से परगच्छवालों की निंदा रूप कपोलकल्पित महामिथ्या कटु वचनों को उनके गुर्वादिक ने अपने रचे द्वादश जल्पपट्ट आदि ग्रंथों में जलशरण द्वारा मिथ्या ठहराये हैं या नहीं ? और उन मिथ्या वचनों को कोई माने वह गुरु-प्राज्ञा लोपी हो, ऐसा लिखा है या नहीं ?
इन उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर तपगच्छ के श्रीप्रानंदसागरजी सत्य प्रकाशित करें । इत्यलं किंबहुना ?
* छठा प्रश्न * तपगच्छ के श्रीवानंदसागरजी ने स्वप्रतिज्ञापत्र में लिखा है कि ईर्यापथिकी सामायिकोचारात्माकर्तव्या न वा ? अर्थात् नवमा सामायिक व्रत करने की विधि में करेमि भंते सामाइयं इत्यादि सामायिक दंडक उच्चरणे के पहिली ईरियावही श्रावक करें या नहीं?
[उत्तर ] इस विषय का निर्णय "आत्मभ्रमोच्छेदनभानु" ग्रंथ में संपूर्ण लिखा है । वास्ते उस ग्रंथ में देख लेना । क्योंकि श्रीश्रावश्यक सूत्र बृहत् टीका आदि अनेक ग्रंथों के प्रमाणों से नवमा सामायिक व्रत करने की विधि में पहिली करेमि भंतेसामायिक दंडक उच्चर के पीछे ईरियावही श्रावक करें, इसलिये शास्त्रकार महाराजों ने नवमा सामायिक व्रत में पहिली करेमि भंते पीछे ईरियावही यह जो विधि लिखी है उसमें तपगच्छ वालों को शंका करनी वा अश्रद्धा रखनी सर्वथा अनुचित है। यदि तपगच्छ के श्रीमानंदसागरजी कहें कि श्रीमहानिशीथShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com