________________
तो १०० दिने दुसरे कार्तिक अधिक मास में कार्तिक चतुर्मासी कृत्य कदाग्रह से क्यों करते हो ? अधिक नहीं याने स्वाभाविक प्रथम कार्तिक सुदी १४ को ७० दिने कार्तिक चतुर्मासी कृत्य करने में किस पागम के वचन को वाधा आती है ?
२ [प्रश्न ] "समणे भगवं महावीरे वासाणं २० मवीसइ राइ १ मासे वइते वासावासं पज्जोसवेइ।"-इस श्रीपर्युषण कल्पसूत्र तथा श्रीसमवायांग सूत्रवाक्य से ५० दिने श्रीपर्युषण पर्व करने की शास्त्र की आज्ञा को मानते हो और अधिकमास को गिनती में नहीं मानते हो तो ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने कदाग्रह से सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण पर्व के कृत्य क्यों करते हो ? ५० दिने स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास में सुदी ४ को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषणपर्व के कृत्य करने में किस आगम के वचन को बाधा आती है ?
३ [प्रश्न ] "वरिमारतं एगखेते अत्थित्ता कत्तियन उम्मासिय पड़िवयाए अवस्स रिणगंतव्वं ।" इस निशीथ चूर्णिवाक्य से साधुओं को वर्षाकाल में एक क्षेत्र में कात्तिक चातुर्मासिक पूर्णिमा पर्यत स्थिति करके ( पड़िवा ) एक्कम को अवश्य विहार करना लिखा है । वास्ते आश्विनमास की वृद्धि होने से ५० दिने भाद्रसुदी ४ को पर्युषण पर्व करने के बाद १० दिने भाद्रसुदी १४ को पाक्षिक प्रतिक्रमण करते हो तथा प्रथम आश्विनमास के दो पाक्षिक प्रतिक्रमण में १५-१५ रात्रिदिन गिनती में बोलते हो एवं दूसरे प्राश्विन अधिकमास के दो पाक्षिक प्रतिक्रमण में भी १५-१५ रात्रि दिन गिनती में बोलते हो और कार्तिक वदी १४ के पाक्षिक प्रतिक्रमण में १५ रात्रि दिन गिनती में बोलते हो और १५ दिने कार्तिकसुदी १४ को चतुर्मासी प्रतिक्रममादि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com