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( २७ ) कल्याणकसंबंधिनीमऽन्यतिथिमऽभिगृह्य चतुर्थाद्युपवासिना श्राद्धेन इत्यादि।
अर्थ-पौषध और पर्व, यह दोनों शब्द समान अर्थ वाले हैं। वह पौषध अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या रूप पर्वतिथि को अथवा श्रीपर्युषणपर्व तथा कल्याणक संबंधी प्रतिपदा आदि अन्यतम तिथि को ग्रहण करके चतुर्थादि उपवासवाला श्रावक यथोक्त रीति से धर्मानुष्ठान करें।
दूसरी श्रीतत्वार्थभाष्य की वृत्ति उसका पाठ । यथा
मोऽअष्टमीमित्यादि स पौषधोपवास उभयोः पतयोरष्टम्यादितिथिमऽभिगृह्य निश्चित्यबुद्धया ऽन्यतमां वेति प्रतिपदादि तिथिमऽनेनचाऽन्यासु तिथिषु अनियमं दर्शयति नाऽवश्यतयाऽ न्यासु कर्त्तव्यः अष्टम्यादिषु तु नियमेन कार्यश्चतुर्थाद्युपवासिनेति कर्तृलक्षणा तृतीया इति ।
___ अर्थ-वह पौषध उपवास दोनों पक्ष की अष्टमी आदि तिथि को अथवा अन्यतमां याने प्रतिपदा आदि कल्याणक संबंधी या पर्युषणपर्व संबंधी अन्य तिथि को ग्रहण करके श्रावक धर्म तत्पर हो यह अभिप्राय या परमार्थ बताए हुए सर्व पाठों के साथ अविसंवादपणे से संगत है किंतु वृत्तिकर्ता ने अष्टमी
आदि तिथियों में नियम से पौषध करना और प्रतिपदादि अन्य तिथियों में अनियम याने अवश्य करके अन्य तिथियों में पौषध उपवास व्रत करने योग्य नहीं है, ऐसा लिखा है। इससे भी मालूम होता है कि प्रति दिवसों में पौषध उपवास व्रत श्रावक को आचरणे योग्य नहीं है किंतु अष्टमी चतुर्दशी आदि और कल्याणक आदि प्रतिनियत दिवसों में पौषध करने योग्य है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com