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________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा : : ८४ : : "" हटाने का सच्चा उपाय आत्मज्ञान, आत्मश्रद्धा और प्रात्मरमणरूप चारित्र है। बिना नींब की इमारत के समान तत्त्वज्ञान और तत्त्वश्रद्धा रहित लोकरंजन निमित्त पूजे जाने-मान किये जाने अथवा स्वदोष छुपाने के लिये आडम्बररूप से की हुइ मायामय धर्मकरणी किसी प्रकार से हितरूप सिद्ध नहीं हो सकती है । अतः प्रथम आत्मा की उन्नति में केवल अन्तरायरूप ऐसी मोहमाया को छोड़ने के लिये भरसक प्रयत्न करना चाहिये | आत्मज्ञान और आत्मश्रद्धा द्वारा बद्धप्रयत्न सफल हो सकता है । सरलाशय निर्मायी का ही कल्याण हो सकता है । जिसकी मन, वचन और काया की प्रवृत्ति सरल - माया रहित है वह ही प्रभु की पवित्र आशा का आराधन कर अक्षयसुख प्राप्त कर सकता अतः जिसको जन्ममरण के अनन्त दुःख से भय हो और अक्षय, अनन्त, निर्भय मोक्षसुख की सच्ची चाह हो उसे माया-कपट छोड़ कर निष्कपटवृत्ति धारण करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिये । उदयरत्न कहते है कि " मुक्ति पुरी जावा तणोजी रे, ए मारग छे शुद्ध रे प्राणी ! म करीश माया लगार । " जिस प्रकार काजल से चित्र काला हो जाता है उसी प्रकार माया से चारित्र मलिन होजाता है, ऐसा समझ कर बुद्धिमान आत्मार्थी जनों को मोहमाया का सर्वथा त्याग करने का पूरा लक्ष्य रखना चाहिये । १०९ - सुधा समान अध्यातम वाणी - अध्यात्म शास्त्र का उपदेश अमृत समान है। उससे आत्मा को परम शांति का अनुभव होता है और अनुक्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हो सकती है । अध्यात्म मार्ग बतलावे वह अध्यात्म वचन है । जो वचन ऐकान्त आत्महित ही के लिये है, जो वचन राग द्वेषादिक विकारवर्जित वीतराग प्रभु की अमृतमय वाणी के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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