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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
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भाष से मिल जाने पर प्रभु सहश असाधारण पुरुषार्थ कर लेने पर हम भी प्रभुरूप हो सकते हैं। ऐसी सर्वोत्तम पदवी प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन जिनवाणी तथा जिनमुद्रा है और इसीलिये उसको साक्षात् जिनेश्वरतुल्य गिना जाना संभव है।
९७-सत्य वचन मुखशोभा भारी, तज तंबोल संतते वारी-जिस प्रकार नयन की शोभा जिनबिंब देखना कहां है उसी प्रकार मुख की शोभा मिष्ट, पथ्य और सत्य वचनोच्चारण में है। कितने ही मुग्ध अन तम्बोल चाबने में मुख की शोभा समझते हैं और करते हैं परन्तु वह शोभा केवल कृत्रिम एवं क्षणिक है। जब कि सत्शास्त्रानुसार सत्यवचनोच्चार से होनेवाली मुखशोभा सहज और चिरस्थायी है। इसीलिये उपदेशमाला के लेखकने वचन बोलते समय यह बात ध्यान में रखना कहा है कि " मधुर वचन बोलना परन्तु कडुवे नहीं, बुद्धियुक्त बोलना परन्तु मूर्खवत् नहीं, थोड़ा बोलना पर विशेष नहीं, प्रसंग युक्त बोलना परंतु अति प्रसंग युक्त नहीं, नम्र वचन बोलना परन्तु गर्वयुक्त नहीं, उदार वचन उच्चारण करना परन्तु तुच्छ नहीं, इन वचनों का क्या परिणाम होगा इसका प्रथम विचार कर बोलना परन्तु बिना विचारे नहीं, और जिस से स्वपर का हित हो ऐसा सत्य वचन बोलना परन्तु असत्य-अहित कर, अधर्मयुक्त नहीं । " विवेकी पुरुष. ऐसे ही पचन बोलते हैं और यह ही मुखमंडन है । प्रश्नोत्तर रत्नमाला के कर्त्ताने भी कहा है कि कि वाचां मंडनं सत्यं ' अर्थात् वाणी की शोभा क्या ? उत्तर सत्य । यह बात विशेष जोर से कहने का कारण यह है कि प्राजकल कारण या अकारण ही लोग
सत्य पर प्रहार करते हैं या उन में प्रहार करने की टेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com