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प्रश्रोत्तररत्नमाळा
के चरित्र लिखने की अावश्यकता नहीं है क्यों कि ऐसे चरित्रवाली स्त्रिये बहुत नजर पड़ती है तथा शास्त्र से भो इस बात की पुष्टि होती है वसी हो पुष्टि शास्त्र से अपवाद. रूप से कथित स्त्रियों की भी मिलती है, किन्तु इसका प्रगट सबूत मिले ऐसे निष्कपट आचरणवाली स्त्रिये तो इस समय में भाग्य से ही लभ्य हैं । इसका पूरा सबूत नहीं मिलने अथवा बहुत कम ।मलने का कारण स्त्रियों का जातिस्वभाव ही है। कहा है कि " असत्य भाषण, साहस, माया-कपट, मूर्खपन-प्रज्ञानाचरण, अतिलोभ-तीव्र विषयभोगरूप निर्दयता ( विषयभोगरूप स्वार्थ में अन्तराय होने पर भी स्वार्थ साधने के लिये हृदय की कठोरता ) और अशुचिता-अपवि. त्रता आदि दोष स्त्रीजाति में स्वाभाषिकतया होते हैं । उक्त कचन के अपवादरूप प्रायः वे ही उत्तम सतियें या महासतीयें हो सकती है जो उत्तम प्रकार की शील सम्पत्ति से विभूषित हैं तथा जिन्होंने स्वपति में या स्वगुरु में हो सर्व स्व समज रक्खा है। नीच सोई परद्रोह विचारे, ऊंच पुरुष परविकथा निवारे । उत्तम कनक कीच सम जाणे, हरख शोक हृदये नवि आणे॥१७ अति प्रचंड अग्नि हे क्रोध, दुर्दम मानमतंगज जोध । विषवल्ली माया जगमांही, लोभ समो सायर कोई नांहि ॥१८ नीच संगथी डरीए भाई, मलिये सदा संतकुं जाई । साधु संग गुण वृद्धि थाय, नारी की संगते पत जाय ॥१९॥ चपला जेम चंचल नर आय, खिरत पान जब लागेवाय । छिल्लर अंजलि जल जेम छीजे, इणविध जाणी ममत कहा
कीजे ॥ २०॥
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