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________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा :: १० : : २८ प्रश्नों का उत्तर निम्न लिखित प्रकार हैं देव श्री अरिहंत निरागी, दया मूल शुचि धर्म सोभागी। हित उपदेश गुरु सुसाध, जे धारत गुण अगम अगाध ॥१॥ उदासीनता सुख जगमांही, जन्म मरण सम दुःख कोई नांही। आत्मबोध ज्ञान हितकार, प्रबल अज्ञान भ्रमण संसार ॥२॥ चित्तनिरोध है उत्तम ध्यान, ध्येय वीतरागी भगवान । ध्याता तासु मुमुक्षु बखान, जे जिनमत तत्वारथ जान ॥३॥ लही भव्यता मोटो मान, कवण अभव्य त्रिभुवन अपमान । चेतन लक्षण कहीए जीव, रहित चेतन जान अजीव ॥४॥ परउपकार पुण्य करि जान, परपीड़ा ते पाप बखान । आश्रव कर्म आगमन धारे, संवर तास विरोध विचारे ॥५॥ निमल हंस अंश जहां होय, निर्जरा द्वादशविध तप जोय । वेद भेद बन्धन दुःखरूप, बंध अभाव ते मोक्ष अनूप ॥ ६ ॥ परपरिणति ममतादिक हेय, स्वस्वभाव ज्ञान कर ज्ञेय । उपादेय आत्म गुण बंद, जाणो भविक महासुखकंद ॥७॥ परम बोध मिथ्यादृक् रोध, मिथ्यादृग् दुःख हेत अबोध । आत्महितचिन्ता सुविवेक, तास विमुख जड़ता अविवेक ॥८॥ १. देव श्री अरिहंत निरागी-राग, द्वेष और मोहादिक दोष मात्र से मुक्त हुए सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, उत्कृष्ट चारित्रवंत तथा सर्वशलिसंपन्न ऐसे अरिहंत भगवान ही देवाधिदेव हैं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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