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________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा ॥ १२ ॥ किणथी डरीए सर्वदा, किणथी मलीए धाय । किणकी संगत गुण वधे, किण संगत पत जाय ॥ ९ ॥ चपला तिम चंचल कहाँ, कहाँ अचल कहाँ सार । पुनि असार वस्तु कहाँ, को जग नरक दुवार ॥ १० ॥ अंध बधिर जग मूक को, मात पिता रिपु मित । पंडित मूढ़ सुखी दुःखी, को जगमां है अभीत ॥ ११ ॥ मोटा भय जग में कहाँ, कहाँ जरा अति घोर । प्रबल वेदना है कहाँ, कहाँ वक किशोर कल्पवृक्ष चिन्तामणि, कामधेनु को कहाय । चित्रावेली है कहाँ, क्या साध्यां दुःख जाय ॥ १३ ॥ श्रवण नयन मुख कर भुजा, हृदय कंठ अरु भाल । इनका मन्डन है कहां, कहां जग मोटा जाल ॥ १४ ॥ पाप रोग अरु दुःखना, क्या कारण से होय । अशुचि वस्तु जग में कहाँ, कहाँ शुचि कहां होय || १५ || कहां सुधा अरु विष कहाँ कहाँ संग कुसंग | कहां है रंग पतंग का, कहां मजीठी रंग ॥ १६ ॥ ः ८ ः ः ११४ प्रश्न सूचक १६ दोहों का अर्थ देव, धर्म और गुरु किसको कहना चाहिये ? सुख, दुःख, ज्ञान, अज्ञान, ध्येय, ध्याता, मान, अपमान, जीव, अजीष, पुण्यं, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, हेय, ज्ञेय, उपादेय, बोध, अबोध, विवेक, अविवेक, चतुर, मूर्ख, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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