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________________ प्रश्नोत्तरग्न्नमाळा गुग्म विषयक ७० भेद ) और करणसित्तरी ( उत्तर गुण सम्बन्धि ७० भेद ) का जो सेवन करते हैं, इसी प्रकार ज्ञान और चारित्र से पूर्ण ऐसे जिनके हृदय में अत्यन्त करुणाभाव का संचार है, अपितु जो मेरुपवर्त समान धीर-निश्चल है अर्थात् जो ग्रहण की हुई उत्तम प्रतिज्ञा से जो चलायमान नहीं होते हैं, जो सिंह के समान पराक्रमी हैं, अर्थात् कर्म शत्रुओं का नाश करने में जो केसरीसिह के सदृश हैं, और सागर के समान गंभीर हैं अर्थात् रत्नाकर जैसे अनेक गुणरानों से परिपूर्ण होनेपर भी अपनी मर्यादा का उल्लंघन न कर यत्न पूर्वक उनका संग्रह रखते हैं । इसी प्रकार वायु के सदृश अप्रतिबन्धनरूप से एक स्थान से दुसरे स्थान को ऐकान्त हित के लिए प्रयाण करते रहते हैं इत्यादि साधु योग्य गुणों से अलंकृत होनेसे अपने समागम में आये भव्यजनों को पावन करते हैं। ऐसे जंगम तीर्थरूप मुनि जनों को मन के अत्यन्त प्रेमभाव से मैं प्रणाम करता हुँ ॥ २ से ५ ॥ इस प्रकार अभिष्ट देव,गुरु को वन्दनारूप मंगलाचरण कर के अब इस ग्रन्थ में जिस बात को कथन करना है उसको ( अभिधेय ), उसके प्रयोजन तथा उसके फल को संक्षेप से ग्रन्थकार बतलाते हैं। विवेचन:--जिसमें लाखों बातों का समावेश होस के ऐसी अति गत्य की-महत्व की बात प्रत्येक प्रश्न में आवे ऐसे ११४ प्रश्नों का इस प्रश्नोत्तर नामक ग्रन्थ में मैं ब्यान करुंगा ॥ ६ ॥ इस प्रश्नोत्तररत्नमाला नामक ग्रन्थ को जो आत्मार्थी स्त्री-पुरुष कंठस्थ करेंगे और अच्छी तरह से मन न करेंगे उनके हृदय में अत्यन्त हितकारी विवेक विचार उत्पन्न होगें, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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