________________
५४
प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक पणइ करेमि भंते ! सूत्रना पाठ थकी पछइ इरियावही पडिकमिवर काउ छइ "पछा इरिय पडिक्कमई" एहवइ वचनइकरी “पश्चातीर्याथिको प्रतिकामति" एहवा प्राकृत संस्कृत वचनइ करी वखाण्यउ छइ वाची वचावी जोज्यो, जेहनइ जीयइ गुरुनी प्रतीति होवइ तेहनइ पूछिज्यो! वली तपागच्छीय देवेंद्रसूरिकृत 'श्रावक दिनकृत्य' ग्रन्थमांहि “काउण य सामाइयं, इरियं पडिकमिय गमणामालोए। वंदित्तु सूरिमाइ, सज्झ्यावस्सयं कुणई ॥१॥ ए गाथा तथा ए गाथानी टीका जोज्यो, एह ग्रन्थमांहि तपागच्छीय श्रीदेवेंद्रसूरिई निरविरोधियई सामायिक व्रत करतां करेमि भंते ! कह्या पूठइ इरियावही पडिकमिवी कही छइ । तथा
" नवमत्रतचूर्णी हि सामायिकदंडकोच्चार ईर्यापथप्रतिकरणं गुरुचैत्यवन्दनञ्चोक्तानि सन्ति” इत्यादि प्रतिक्रमण विचारे, एवं तपांनाई कर्या विचारामृतसंग्रह' ग्रन्थमाहि ५ ( सामायिक) विचारे करेमि भंते ! कह्या पछी इरियावही पडिक्कमिवी कही छइ, परं कदाग्रही मनुष्य आपणां गुरुना कह्याइ हठ थकी न मानई तउ स्युं कहीयइ ? वली विशेषार्थीयइ अस्मत्कृत इरियावही छत्रीसीनी वृत्ति जोइवी, तिहां, पाठबद्धइ पछइ इरियावही पडिकमिवाना ग्रन्यांना नाम ( तथा ) युक्ति लिखी छइ, परं दृष्टिरागी म थास्यउ ॥१०॥
भाषा-सा१श्य मत्ति (पत्र ८३२), आवश्य५-यूणि ( Vत्तरा ० २४८), ५याशत्ति ( पत्र २३ ) या यूशि (પત્ર ૯૩) ઇત્યાદિ સર્વસંમત પ્રાચીન ગ્રંથમાં સામાયિક વ્રત લેવાના Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com