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________________ प्रश्नोत्तर एकसोसाडीसमो ३६६ छंइ, उत्तरितए वा संतरितए वा ' एहवा पाठई करी तेहनइ विषइ तरि वारम्वार तरिवउ कारण विशेष काउ छइ तिहां पुरि नीलफूलणि संभवइ त्रसजीव पुरिण हुवइ वा लहइ, तेह ऊतरिवाना प्रायश्चित्त इरियावही प्रमुख जे आगममांहि कह्या हव ते विचारीयइ, असंबद्ध बोल न बोलीयइ । वली क्षेत्र देवता तथा भवनदेवता प्रमुख देवताना काउसग्ग सांझिनइ पडिकमणइ तथा पाखी चउमासी संवच्छरीनइ पडिकमणइ करतां देवताना काउसरग थुइ प्रमुख सहू गच्छवासी करइ छ, एवं दृष्टिराग छांडि विचारिज्यो, जाणीयइ छइ समझि पडिस्यइ, किवारएक गुणणा समा न थाइ तउ उपद्रव पुरिण ते देवता जणावइ, जे भरणी लोक कहावतइ सांभलीयइ छ- तपां ऋषिमतीयांनइ गच्छि थोडदीहा श्रीहीरविजयसूरिई संघनइ गच्छनइ उदय निमित्ति उच्छिष्टचंडालिनी देवता मइलइ प्रकारइ साधिवी मांडी हती. परं किरणईकइ मेलि देवता न सधाणी किन्तु कोपित थइ, पछी यति शत २ तथा अढीशत शत (?) यतिना यान कीधा, पछइ वली फेरीनइ उच्छिष्टा देवता रूडइ मेलि नवीदा साधी, पछी ते भईयानी गच्छनी प्रतिष्ठा विशेषइ वाधी, इहां पछs अधिक श्रोछा कूड साच केवली जाणइ, एवं गीतार्थ गुरु संघनइ उदयनइ निमित्ति देवतानइ साधइ आराधइ, एवं कूडी मति साथि विचारीनइ एहवा कुबोल न बोलीयइ. जे चितवीयइ पर ते पडइ घरि, एवं जाएंगी समझी बोलीयइ तड लाभ थाइ । वली 'धारणधार' देसइ ' मगरवाड' गामि पाल्हापुरनइ www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.035209
Book TitlePrashnottar Chatvarinshat Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherPaydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
Publication Year1956
Total Pages464
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size24 MB
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