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प्रश्नोत्तर एकसोचौ दमो तत्रार्थे- श्रावक श्राविका केवल संमारार्थि गुणणा तथा कुगुरु कुदेवना ध्यान न करइ, धर्मार्थई गुणणादिक करइ पिण, तथा कृष्ण पोसहशालामांहि इहलोकाथइई भाईनइ काजि अटुम तपइ देवतानउ ध्यान कीधउ, तथा अभयकुमारइ पोसहमालामांहि मेहनइ काजि अट्ठम तपइ ध्यान कीधर, अभयकुमारना पोसह, पुणि तपा रत्नशेखरसूरिइं प्रतिक्रमणसूत्रनी वृत्तिमांहि पोसह व्रत करी लिख्या छइ, ए पोसहमांहि इहलोकार्थि तप ध्यान क्ह्या छइ, विचारिज्यो, आपणउ बेटउ पारकर झोटींग न कहींयइ, तथा क्षायिक मम्यक्त्वधारीयइ कृष्णइ द्वारिकाना उपद्रव वारिवानइ काजि तप आंबिल जिनपूजा प्रमुख कराया श्रीउत्तराध्ययन टीका मांहि ह्या छइ, ए इहलोकार्थि छइ, वली श्रीभद्रबाहुस्वामीयइ संघना उपद्रव वाग्विा भणि संघनइ 'उवसम्गहरं पासं' एह श्रीपार्श्वनाथस्तवन करी दीधा कह्या छइ, अनइ श्रीमानदेवाचार्यइ संघना उपद्रव वारिवानइ काजि शांतिस्तवन शांतिमंत्र गर्भित गुणणा निमित्त करी दीधा छइ, ए पिण इहलोकार्थ जाणिवा, तथा श्रीहरिभद्रसूरिकृत ललितविस्तरा वृत्तिमांहि (अनइ) श्रीअभय. देवसूरि श्रीपंचाशक वृत्तिमांहि “ इट्टफल सिद्धि” एह पदनी व्याख्यानइ अधिकारि “इष्ट[फल]सिद्धि-रभिमतार्थ निष्पत्तिरैह्यलौकिकी, ययोपगृहीतस्य चित्तस्य स्वास्थ्यं भवति, ततश्च धर्मवृद्धिः" इति पंचाशकवृत्ति तथा " इफलसिद्धीइहलोकइ जीणइ छतइ आजीविकाना श्राहट दोहट गाढा न हवइ ते धनादिकनी प्राप्ति थाज्यो” ए तपा श्रीसोम
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