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३३० प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक
तत्रार्थ-पौषधोपवास नाम ११(मो)व्रत जे कीजइ ते उपवास कीधइजि थाइ, जइ दिनइ उपवास तिविहार तथा चउबिहार करइ त उहीन ते पोसह व्रत थाइ, अनइ जइ दीहइ जिम्याई पोसह व्रत थाइ तउ शतकादि श्रावके पाखीनइ दिहाडइ जिमीनइ पोसह व्रत कांइ न कीधर ? तेही श्रावक 'लद्धष्ट्ठा गहीयऽट्टापुच्छियऽट्ठा विणिच्छियऽद्वा' हता, तथा वली जइ जिमीनइ पोसह लेवउ थात तउ शंख श्रावकइं शतकादि सावत्थी नगरीना साहम्मीयांनइ इम कांइ कह्यउ ? जे आज जिमतां माहम्मीयांनइ पोसिवारूप-साहम्मीवात्मल्यरूप पोसह करिस्यां, अथवा भोजन कर्यां पछी चतुर्विध पोमहमांहिला अव्यापारपोमह करिस्यां, परं पूरा पोमह लेस्यां इम काइ न कह्यउ ? एवं जइ जिम्यां पछी पोमह व्रत(न)लेवाइ त उ जिमीनइ पोमह किम लीजइ ? ५वं पिच्छेज्यो, शतका(शंखादि)दि श्रावकांनइ जीमतां त्रिरिह काम थातपोमह थात-जिमणा थात-पर्वतिथि पूर्णिमा आगधी थात, वली शंवादिकसु मिच्छामि दुक्कडं देवो न थात, ते पिण डाहा हता, जइ इमइ पोसह व्रत थात तउ स्यइ न जिम्या ? परं जिमीनइ पोसह न लीजइ, तेह भणी पोसह न कीधा जाणीयइ छ।। तथा 'पोसहं दुहओ पक्ख, एगराई न हायए' इति श्रीउत्तराध्ययननीवृत्तिना व्याख्यानन्यायइ जइ उपवासीतानइ कामकाजनइ मेलि पर्वदिवमई दिनई पोमह न करणउ तउ पर्वनी रातिनाउ पोमह श्रावक करइ, ए भाव जाणिवउ, वली उपवासीतउ श्रावक सांझि पोसह वत चउविहार करीनइ ल्यइ
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