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________________ गाषिक शिलालेख जिस समय दिल्ली के सिंहासन की कि नाना कारणों से दुल हो जाने से विशाल मुगल साम्राज्य में स्थान स्थान पर अशान्ति फैली हुई थी, उस समय का ठोक इतिहास दुष्प्राप्त सा है। उस समय लोग अपनी जान और माल की चिन्ता में से थे। उनको साहित्य या इतिहास की खबर लेने का अवसर ही न मिलता था। ऐसे समय ब्रिटिश सरकार बङ्गाल प्रान्त में अपना पाया जमाने के प्रयन में लगी थी। यह उसी समय का शिलालेख है। बात से पाठक "रानी मवानी के नाम से परिचित होंगे। उनकी राजधानी मुर्शिदाबाद के पास ही भागीरथी के पश्चिमी तट पर देवीपुर नाम का एक कस्या है। किसी समय वह साधु महन्त लोगों का लोलाक्षेत्र था। स्थान स्थान से सब श्रेणी के धार्मिक सजन यहाँ माकर मन्दिर, मठादि प्रतिष्ठित करके वहीं जीवन व्यतीत करते थे। इस समय देवोपुर का थोड़ा ही टुकड़ा रह गया है। वहाँ महन्त लोगों के तीन अखाड़े थे, बहुत से मन्दिर प्रतिष्ठित थे, मोर देवसेवा तथा अव्वस्त्र की मच्छी व्यवस्था थी। भाज तक ऐसे अखाड़ों की बड़ी बड़ी टी इमारतें मोर भएरहर देखने में भाते हैं। मुझे खबर मिलो थी किवहां के एक अखाड़े में एक बड़ा शिलालेख है। मैने पता लगाकर जब उस लेख को देखा, तप श्याम पाषाण का २८१ सम्बा और १४ चोड़ा एक विशाल शिलालेख पाया। उसके राकिनागे में सुन्दर नशे की बेल बनी हुई है। उसके अक्षरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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