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________________ * प्रबन्धावली # * ३३ * जैन ग्रन्थ माला - और जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, तथा कलकत्ता की जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था से एवं सूरत के दि० जैन पुस्तकालय : तथा लाहौर के स्व० ज्ञानचन्द जी द्वारा प्रकाशन हुआ है । साहित्य प्रेमी श्रीमान् बड़ौदा नरेश की तरफ से गायकवाड़ ओरियंटल सिरीज़ में भी कई जैन ग्रन्थों का अत्युत्तम संस्करण छप चुका है और छप रहा है। बम्बई संस्कृत सिरीज़ में भी कई प्राकृत, संस्कृत जैन ग्रन्थों का अच्छा सम्पादन हुआ है । इनके सिवाय इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटाली नावें आदि स्थानों में अर्जुन विद्वानों ने जो कुछ मूल, अनुवाद, टीका टिप्पणियों के साथ ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं उनके लिये समस्त जैन समाज आभारी है। यह अव दूसरा विषय सामयिक पत्रों के सम्पादन का कार्य है । भी काम बहुत कठिन है। आज कल सम्पादक उसे कहते हैं कि जो महाशय प्रबन्ध लिखे, प्रूफ पढ़ें और पत्र पत्रिका छपवावें । परन्तु यह धारणा भी भ्रमपूर्ण समझना चाहिये। इन कार्यों के सम्पादक का प्रधान कर्त्तव्य उचित विषयों का चुनना, उन पर लिखे लेखों को पसंद करना उन्हें स्थान देना और निष्पक्षपात के साथ पूर्णरूप से सम्पादन का कार्य करना है । यदि सम्पादक स्वयं लिखें तो कोई अपराध नहीं है, परन्तु यह सम्भव नहीं है कि आप औरों के ही लेखों को पढ़ कर उनके गुण दोषों को देखें और सम्पादन के प्रत्येक काम को स्वयं देख रेख करे और स्वयं ही लिखते रहें । परन्तु आवश्यकतानुसार उन्हें अपनी लेखनी से भो काम लेना चाहिये । तो भी मुख्यतः विषयों का सुधार करना ही पत्रों के सम्पादक का प्रधान कार्य होना चाहिये । पत्रों के सम्पादन में साहस और धैर्य के साथ धन, समय और शक्ति की भी आवश्यकता है। और इन सबों का सदुपयोग सर्वथा वांछनीय है । मेरे विचार से निम्नलिखित कई बात पर ध्यान रखने से पत्र सम्पादन कार्य में सहायता मिलेगी : — ( १ ) पत्र पत्रिका की भाषा जितनी सुवोध होगी हतनी ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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