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________________ * प्रबन्धावली * है, ऐसा जानते होंगे। कासगंज से सम्बत् १९७३ को प्रकाशित 'ब्राह्मण निर्णय' नामक पुस्तक की पृष्ट २६५ में लिखा है-"चौरा. सिया-यह गौर ब्राह्मणान्तर्गत एक ब्राह्मण समुदाय है, इनकी बस्ती जयपुर या जोधपुर राज्यमें है, किसी समय चौरासी ग्रामोंकी वृत्ति इनके यहां थी, अतः ये चौरासिये ब्राह्मण कहाये अथवा किसी ऐति. हासिक विद्वान् की सम्मति यह भी है कि ये भट्ठ मेवाड़-सम्प्रदाय में हैं और विशेष-रूपसे मारवाड़ के चौरासो ग्रामों में बहुत हैं।" ब्राह्मणों की तरह जैनियों में भी श्रावकों की जाति की संख्या चौरासी कही जाती है। इन श्रावकों की जातियों के नाम भी वही चौरासी अङ्क के महत्व के लिये एकत्रित किये गये होंगे। देश, जाति और गोत्रादि की अपेक्षासे श्रावकों की जाति-संख्या चौरासी से भी अधिक मिलती है, और वर्णादि दृष्टिसे उनके भेद चौरासी संख्यासे बहुत कम भी है। चौरासी संख्याका महत्व ही इसका एकमात्र कारण मालूम होता है। इसी प्रकार जैनियोंके आचार्यों में जो गच्छभेद हैं, उनकी संख्या भी प्रसिद्धि में चौरासी बतलाई जाती है, परन्तु वास्तव में चौरासी से भी अधिक मिलते हैं। कई स्थानोंमें जैन-तीर्थों की संख्या भी चौरासी देखने में आई है। जैन लोग जो चौरासी लक्ष जीव-योनि को संख्या बताते हैं उसकी गणना इस प्रकार है-पृथ्वीकाय ७ लक्ष, अपकाय ७ लक्ष, तेजकाय ७ लक्ष, वायुकाय ७ लक्ष, प्रत्येक बनस्पतिकाय १० लक्ष, साधारण वनस्पतिकाय १४ लक्ष, दो इन्द्रियवाले २ लक्ष, तीन इन्द्रिय वाले २ लक्ष, चार इन्द्रियवाले २ लक्ष, देवयोनि ४ लक्ष, नरकयोनि ४ लक्ष, तिर्यंच पचेन्द्रिय ४ लक्ष और मनुष्ययोनि १४ लक्ष-सब मिला कर ८४ लक्ष। __ जैनियों में इस चौरासी अङ्क का व्यवहार और भी बहुत से स्थानों में मिलता है। जैसे कि इनके प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान की आयु चौरासी लक्ष पूर्व वर्ष की थी इत्यादि। इनके अतिरिक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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