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● प्रबन्धावली ●
अधिकांश कायोत्सर्ग मुद्राकी खड़ी मूर्तियां दिगम्बर है अर्थात् उनमें पुरुष चिन्ह वर्तमान हैं I इन प्राचीन जैन मूर्तियोंपर जो कुछ खुदा है, उससे उस समय के प्रचलित गण, गोत्र, कुल, शाखा और गच्छ इत्यादिका पूर्ण विवरण मिलता है । किसी-किसी मूर्ति में समसामयिक महाराज कनिष्क और हविष्क इत्यादि राजाओंके शासनकालका भी उल्लेख हैं, परन्तु विक्रमकी ११ वीं शताब्दी से पूर्व उस समय के जैन लोगों में सम्प्रदाय विभेदका कुछ भी उल्लोख आजतक नहीं मिला है । विक्रमकी ११ वीं शताब्दी के वादकी जो कुछ मूर्तियां वहां मिली है, उनमें कहीं कहीं श्वेताम्बर शब्दका उल्लेख बर्त्तमान है; किन्तु उस समय की मूर्तियों की शिला लिपिमें आजतक "दिगम्बर" शब्द कहीं नहीं मिला । पाठकगण इससे सहज ही अनुमान कर सकते हैं कि प्राचीन काल में जैनियों में कोई सम्प्रदाय भेद नहीं था । इन शिला लिपियों में कुल, गण शाखा गच्छ इत्यादिका जो कुछ उल्लेख आया है, प्रायः वह सब श्वेताम्बरी लोगों के कल्पसूत्रादि प्रन्थों में वर्णित हैं, किन्तु दिगम्बर लोगों के किसी ग्रन्थमें इन शाखा कुल प्रभृतिका उल्लेख नहीं मिलता। अतएव श्वेताम्बर सम्प्रदायकी अपेक्षा दिगम्बर सम्प्रदायको प्राचीन कहना भ्रमपूर्ण है ।
पाठकगण निम्नाङ्कित एक और दृष्टान्त से यह भली भांति समझ जायेंगे कि दिगम्बर सम्प्रदायवाले अपने सम्प्रदायकी प्राचीनता सावित करने के लिये चाहे जितने भी प्रमाण और व्याख्याएं क्यों न उपस्थित करें, पर वे इतिहास की दृष्टि से मूल्यवान नहीं हो सकते और इस दृष्टान्त द्वारा श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता स्पष्ट सिद्ध होती है 1 श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मतानुसार चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर अपनी क्षत्रियानी माता त्रिशला के गर्भ से जन्म ग्रहण करने के पूर्व देवानन्दा नामक ब्राह्मणी के गर्भ में अवतीर्ण हुए थे 1 पश्चात् इन्द्रादेश से हरीनेगमेसी नामक देवनाने देवानन्दाके गर्भ से भगवान् महावीरको उठाकर माता त्रिशलाके गर्म में स्थापित किया
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