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* प्रवन्धावली ●
परन्तु
के सब हिन्दू, बौद्ध देवता और देवियों की मूर्त्तियां तोड़ दी थीं । धार्मिक उदारता के कारण जैनियों पर कोई विशेष अत्याचार का उल्लेख नहीं मिलता। मुझे कुछ समय पूर्व तीर्थ - राजगृह के पंच पहाड़ों में से पहिले विपुलाचल के श्रीपार्श्वनाथ मंदिर की विशाल प्रशस्ति मिली थी। यह संस्कृत भाषा में गद्य-पद्यमय है और इसका समय विक्रम संवत् १४१२ अर्थात् १५ वीं शताब्दी है । उस समय सम्राट् फिरोज़ शाह राज्य करते थे । उक्त प्रशस्ति में उल्लेख है कि मुसलमानगण भी जैनियोंके धार्मिक कार्य में सहायता देते थे प्रशस्ति के आदि और अन्त के कुछ भावश्यक अंश यहां उधृत किये जाते हैं :
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“ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय । श्रेयः श्रीविपुलाचला मरगिरिस्थेयः । स्थितिस्वाकृतिः । पत्रश्रेणिरमाभिरामभुजगाधीशस्कटासंस्थितिः ॥ पादासोनदिवस्पतिः शुभफलो कीर्त्तिपुष्पो दामः । श्रीसंघाय ददातु बांछितफलं श्रीपार्श्व कल्पद्रुमः ॥ १ ॥ श्रीराजगृह महातीर्थे । गजेंद्राकारमहा पोतप्राकार श्री विपुलगिरिविपुल वूलापीठे सफलमहीपालचक्रचूलामाणिक्यमरोचिमंजरोपिंजरितचरणसरोजे । सुरत्राणश्रीसाहिपरोजे महमनुशासति । तदीयनियोगान्मगधेषु मलिकवयो नाम मंडलेश्वरसमये । तदीयसेवकसद्दण सदुर दीनसाहाय्येनइति विक्रम संवत् १४१२ आषाढ़ बदि ६ दिने । श्रीखरतरगच्छशृङ्गारसुगुरुश्रीजिनलन्धिविट्टालंकारश्री जिन चंद्रसूरि णामुपदेशेन ।....... बच्छराज ठ० देवराज सुश्रावकाभ्यां कारितः श्रीपार्श्वनाथ प्रासादस्य प्रशस्तिः ॥ *
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भावार्थ यह है कि सुलतान फिरोजशाह ने मलिकचय को मगध प्रदेश का सूबा अर्थात् शासक नियुक्त किया था। सूबा के कार्यकर्त्ता शाह नासिरुद्दर्शन की सहायता से मगधदेश स्थित राजगृह तीर्थ के निलगिरि पर आचार्य श्रीजिनचन्द्र सूरि के उपदेश से
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