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* प्रबन्धावली
प्रधान गद्य का गंगाभाट के पीछे सत्र से प्रथम रचयिता यही जटमल कवि है। __ गोरा बादलकी कथा गुरु के बस सरस्वतीके महरवानगी से पूरन भई तिस वास्ते गुरू कू व सरस्वती क नपस्कार करता हूं। ये कथा सोलसे आसी के साल में फागुन सुदी पुनम के रोज वनाई । मोरछड़ो नाव गावका रहनेवाला कवेसर जगहा उस गांवके लोग भोहोत (बहुत) सुकी है, घर-घरमें आनन्द होता है, कोई घरमें फकीर दीखता नहीं। धरमसी नाय का वेतलीन का वेटा जटमल नाव कसर ने ये कथा सबळ गांवमें पूरण करी।"
उक्त पुस्तक के द्वितीय भाग, पृ० ६१२-१३ नं० १११७ में गध इति. हास के वर्णन में ऐसा लिखा है___ “वर्तमान गद्य के जन्मदाता सदल मिश्र और लल्लूजी लाल माने जाते हैं कुछ वैद्यक आदि की पुस्तकें भो लिखी गई और कई ग्रन्थों की टोकायें भी ब्रजभाषा गद्यमें बनीं, परन्तु पहले पहल गोरखनाथ ने गद्य-काव्य किया और फिर खड़ो बोली प्रधान गद्य में पुस्तक रूप से गंगभाट ने काव्य किया और जटमलने सं० १६८० में गोग बादल की लड़ाई लिखो। उसके पीछे सूरति मिश्रने वैतालपचीसो का संस्कृत से ब्रजभाषा में अनुवाद संवत् १७५० के लगभग किया। इनके प्रायः १०० वर्ष बाद इन्हीं दोनों महाशयोंने गद्यमें काव्यग्रन्थ लिने और तभी से वर्तमान गद्य हिन्दी को जड़ दृढ़तासे स्थिर हुई।"
पश्चात् मिश्रबन्धुभों ने हिन्दो-साहित्यका संक्षिप्त इतिहास प्रकाशित किया, और उसके पृ० ३०, ३१ और ०८ में भी इस गद्य अनुवाद के विषय में उसी सिद्धान्त को पुष्ट किया, जो इस प्रकार है
"जटमल बड़ी बोली गय का द्वितीय लेखक है। इसने गोरा बादल की कथा नामक ग्रन्थ में उसी का प्राधान्य रखा है।
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