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[ ४२ ] से वृटिश गवर्नमेण्टके हाथमें आया। अङ्रेजोंके हाथमें आनेपर पटने में सर्वत्र शान्ति रही; किन्तु एक बार सनू १८५७ ई० को पटनेमें फिर युद्ध की आग प्रज्वलित हुई थी, जो आज सिपाही बिद्रोहके नामसे विख्यात है। यद्यिपि यह बिद्रोह भयंकर रूप धारण करके भारतके अनेक अञ्चलमें फैला; किन्तु सबका केन्द्र पटना ही था। अतएव इतिहासमें सिपाही विद्रोहके विषयमें पटनेका ही विशेष उल्लेख है।
भूतपूर्व राजाओं तथा धर्म एवं धर्माचार्योंके अनेक स्मृतिचिन्ह पटनेमें थे, किन्तु आज वे सब नष्ट भ्रष्ट हो गये। जो टूटेखण्डरकुछ (भग्नावशेष) बचे हैं, उनकी दशाभी बहुतही शोचनीय है। जिस किसी उपायसे अवशिष्ट प्राचीन स्मृतिकी रक्षा करना इस समय नितान्त आवश्यक तथा मनुष्यमात्रका परम मर्त्तव्य होना चाहिये। क्योंकि इस समय जब कि प्रत्येक जाति और समाज अपना प्राचीन गौरव प्राप्त करनेके लिये उत्सुक हो रही है, जो एक मात्र प्राचीन स्मृति चिन्होंकी रक्षा करना तथा उन्हें आदर्शके आधारपर भावी उचति की ओर अग्रसर होना ही उपयुक होगा। अन्यथा पूर्ण गौरव प्राप्त करनेके लिये सारे परिश्रम और यत्न शशकटङ्ग ( खरगोशके सींग)को ढढ़नेके लिये जङ्गल-जङ्गल घूमनेके समान व्यर्थ एवं कष्टदायक होनेके अतिरिक और कुछ नहीं होगा। सबसे बढ़कर जैन स्मृतियोंकी दशा खराब हो रही है। इसका प्रधान कारण पटने में जैनियोंकी कमी तथा धनका अभाव है। अतएव अन्य देश-देशान्तरोंके
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