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( २१ ) लगे, कोई आचार्य महाराज और राजाका गाढ़ धर्म-प्रेम, पारस्परिक प्रीति और विश्वासका स्मरण करके अश्रुधाग बरसाने लगे। थाड़ो देरको चारों ओर निस्तब्धता (चिन्ता) सी छा गयी। पीछे मन्त्री-सामन्तोंने उस पापात्माको पकड़नेके लिये चारों तरफ घुड़सवार भेजे, परन्तु उसका कहीं भी पता न लगा। शोक विहल मन्त्रिीवर्ग राजा और मावार्य महाराजकी(औधदैहिक क्रिया) अग्निसंस्कार करनेके वाद धर्म-पूर्वक शासन चलाने लगे । राजा उदायोको मारकर वह दुष्ट शीघ्रही उज्जयिनी नगरी में चला गया और जैनाधिपतिसे उदायीके मरनेका सब हाल कह सुनाया यह सुनकर अवन्तीतिने दयाकी दृष्टिसे उसकी ओर देखकर कहा,-"अरे दुष्ट ! जब तू इतने दिनोंतक दीक्षा ग्रहण करके रात-दिन समता-प्रधान साधुओंके पास रहकर और हमेशा धर्माग्देश सुनकर भी शान्त न हुआ, तथा ऐसा दुष्कर्म करनेसे पीछे न हटा, तब तू मेरा क्या भला करेगा! जा, मुंह काला काके मेरे राज्यसे निकल जा। इस प्रकार कह उज्जनाधिपतिने निरस्कार पूर्वक उसे अपने राज्यसे निकाल दिया।
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