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( ५ ) राजा हुमा। इसके उदायी नामका पुत्र दुआ, जो बल, प्रताप स्था सञ्चरित्र-पालनमें उस समय अद्वितीय था। कालक्रमसे राजा कुणिकने इस असार संसारको त्यायकर स्वर्गारोहण करनेपर उसका पुत्र उदायी राज्यासनपर आसीन हुआ। अप्रतिम ऐश्वर्य प्राप्त करनेपर मी पिताकी मृत्युके शोकसे राजा उदायी सदा उदास रहता था। सम्पूर्ण राज्यमें अखण्ड आशाप्रवर्तन पर भी मेघाच्छन्न सूर्यके समान राजा उदायीका मुख निरप्रभ ( निस्तेज) सा रहता था। राजाकी ऐसी शोचनीय दशा देखकर एक दिन मन्त्री आदि प्रधान पुरुषोंने उनसे उदासी का कारण पूछा। राजाने आँखों में मांसू भरकर बड़े ही विनीत मावसे कहा,-"जब मैं इस ननरमें अपने पिताके क्रीडास्थानोंको देखता हूँ, तब मेरा हदय भर आता है और मुझे बड़ी व्यथा होती है। क्योंकि मेरे हृदयमें पिताजी इस प्रकार बस गये है, कि जब मैं राज-समा, गज-सिंहासन, स्नान, भोजन, शयनादिके स्थान देवता, बट स्मरण हो आता है, कि इन्हीं स्थानेर पिताजी मुझे अपनी गोद में लेकर पैठते थे, स्नान-भोजन आदि करते थे। इससे मेरा हदय समुद्रके समान उछलने लगता है मोर साक्षात् पिताजी देख पड़ते है। ऐसी अवस्थामें पिताजीके देखते हुए राज-चिन्होंको धारण यह सर्वथा अनुचित है मौर विनय गुणका भंग होता है मतपय इस राज भवन में रहकर मेरे यस शोक दूर होना एकान्त मसम्भव सा प्रतीत वा है।" मा सदायोंके मुलसे इस प्रकार शोक एवं सन्तापसे
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