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________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [७], उद्देशक -, मूलं [१५...] / गाथा: [२७८-३३४/२९४-३५०], नियुक्ति : २७१-२९३/२६९-२९२], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक भीदश [१५...] गाथा ||२७८ बैकालिक घूर्णी ७वाक्य शुद्धि अ. ३३४|| ॥२३॥ गाहाहि भण्णइ, तं- 'आमंतणि '॥ २७८ ।। गाथा, 'अणभिग्गहिआ भासा' ।। २७९ ।। गाथा, तत्थ 'आमंतणि | जहा हे देवदत्त । एवमादि, आणवणी णाम जो जस्स आणत्तियं देह सा आणवणी भवति, जहा गच्छ, पच पठ, कुरु, भुजा पयोप्तमा एवमादि, जायणि मग्गणी भष्णति, यथाऽस्माकं भिक्षा प्रयच्छ एवमादि, पुच्छणी जहा कओ आगच्छसि कत्थ वा गच्छ-17 सित्ति, तथा- 'कतिविधा ण मते ! जीवा पण्णात्ता' एवमादि, 'इच्छाणुलोमा नाम जहा केणइ भणिया जहा साधुसगासं| गंतव्बंति, ततोऽसौ भणति-ता सोभणं भवइ गच्छामो इन्चेवमादि, 'अणभिग्गहिया' णाम जा मासा अत्थं अणभिगेण्हिऊण केवलं वायमिचमेव उदाहरिज्जति जहा डित्यो डवित्थो अमट्टो पार्थन इति, अहवा-ऊससियं नीससिय निच्छूट खासियं चढ़ छीयं च । णिस्सिघियमणुस्सारं अणक्खरं छल्लियादीयं ॥१॥ जा पुण. भासा अत्थं अभिागज्य भासिया सा अभिग्गहिया, जहा घयं रसं एवमादि, संसयजयणी णाम जहा सेन्धवमाणेहित्ति भणिए ण णवह किं तावत्पुरिसो सिंधयो आणतब्बो उदाहु लवणं आसो वा एवमादि, बोयडा नाम जा पगडत्था, भावियत्यत्ति वुत्तं भवइ, जहा एस माया देवदत्तस्स एवमादि, अब्बोयडा नाम जा सोतारेहि भासिज्जमाणा ण संविज्जह जहा बागाणं एवमादि, एचमसच्चामोसाधारसविधागता । हयाणि 'सच्चा-11 विअसादुविधा' ॥ २८० ॥ गाथा, जा एसा दुविधा चउविधावि भासा भणिया सा सव्वावि दुविथा भवइ, तं०-पजत्तिगा| है अपज्जत्तिगा य, तत्थ आदिल्लियाओ दोष्णि पज्जत्तिगाओ. इतरा दोवि अपज्जत्तिगाओ, पज्जत्तिगाणाम जा अवहारिउं सक्का, २३९॥ जहा सच्चा मोसा बा, एसा पज्जत्तिगा, जा पुण सच्चावि मोसावि दुपक्खगेवि सा न सक्कइ बिभावेउं जहा एसा सच्चा ट्रामोसा वा, अओ सा अपज्जत्तिमा भण्णा, जहा समइए सच्चामोसा अवहारेउं न सक्कड तहा असच्चामोसावित्ति साऽवि अपज्जचा दीप अनुक्रम [२९४३५०] DECEAE [252]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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