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________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा |६० १५९|| दीप अनुक्रम ७६ १७५] भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य |+चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा: [६०-१५९/७६-१७५], निर्युक्तिः [२३५-२४४/२३४-२४४], भाष्यं [६१-६२] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र- [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक चूण ५ अ० ॥१७५॥ | कथाएं णो पणौलेजा, उग्गहंसी अजाइया (७८-१६६) साणी नाम सणवकेडि वि (इ)ज्जह अलसिमयी वा पाचारओ लोगपसिद्धो, एहिं चिलिमिली कज्जइ, तं काउं ताणि गित्याणि वीसत्थाणि अच्छंति, खायंति पिर्यति वा मोहंति वा तं नो अवपंगुरेज्जा, किं कारण है, तेसि अप्पत्तियं भवद्द, जहा एते एचिल्लीप उपचारं न याति जहा गावगुणियव्वं, लोगसंघर्षहारबाहिरा बरागा, एवमादि दोसा भवंति, कवाडं लोग सिद्धं, तमचि कवाडं साहुणा णो प णोल्लयन्त्र, तत्थ पुब्वभणिया दोसा सविसेसयरा मर्वत, एवं उम्माहं अजाइया पविसंतस्स एते दोसा भवंति, जाहे पुण अवस्सकय भवति, धम्मलाभो, एत्थ सावयाणं अस्थि जति अणुवरोधो तो पविसामो । गोयरग्गपविट्टो उ. वच्यमुत्तं न धारए । अबेवास फासूयं नच्चा, अणुन्नवित्त वोसिरे (७८-१६७) पुच्चि चैव साधुणा उवओगो कायच्ची, सण्णा वा काइया वा होज्जा णव चि विपाणिऊण पविसियन्वं, ज‍ वावडयाए उपयोगो ओ सजाया होज्जा ताहे भिक्खायरियाए पविद्वेण पच्चमुत्तं न धारयव्वं, किं कारणं १, मुत्तनिरोधे चक्खुवाघाओ भवति, यच्चनिरोहे य तेयं जीवियमवि संघेज्जा, तुम्हा व्यव्यमुत्तनिरोधो न कायव्योति, ताहे संघाडयस भायपाणि ( दाऊण ) डिस्सयं आगच्छित्ता पाणयं गहाय सण्णाभूमिं गतूण्ड फासूयमवगासे उग्गहमशृण्णावेऊण वोसिरियस्वति । वित्थारो जहा ओहनिज्जत्तीए । किंच 'णीयदुवार' सिलोगो (७९-१६७) णीयदुवारं दुविहं चाउडियाए पिहियस्स वा, जाओ उच्चरगाओ भिक्खा निक्कालिज्जइ तत्थ पलिए उबडियस्स बाउडियन्दांसो भवइ, साणमादी जो भिक्खा 'खाएज्जा, निक्का लज्जइ तं तमसे, तत्थ अचक्खुविसए पाणा दुक्खं पक्खिज्जतित्तिकाउं नीमदुवारे तमसे कोओ वज्जेयब्वी ।। 'जस्थ पुष्फाणि' सिलोगो ( ८०-१८७ ) जत्थ कोडगे दुधारे वा पुष्कारण उप्पलकणवीरादीणि अमिलाणाणि चीयाणि बीहिमा [188] वर्जनीयस्थानानि ॥१७५॥
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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