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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] (०१) श्रीआचाराग सूत्र कर्माश्रवाः ॥१६॥ प्रत वृत्यक [१-१२] D. 'अणेगरूवे फासे पडिवेदेति' अणेगाणि रूवाणि जेसि ते अणेगरूवा, आदिरंतेण सहिता, एगग्गहेण गहणं, तेण गंधरस रूवसद्देवि विविधे वेदेति, पच्छाणुपुची एसा, जेण फरिसवेदगा सब्वेसि संसारीणं पजत्ताण अस्थि एगिदिएसुवि अतो गहणं पजतोऽवि पढम फरिसं वेदेति तेण तम्गहणं, किंनिमित्त से संसारिय कम्म वञ्चति ?, भण्णइ-तत्व खलु भगवया जाव |दुक्रवपडिघातहेउं' (१०,११-२५) तत्थेति तत्थ बंधपगते, खलु विसेसणे, किं विसेसयति?, जाणणापरिण विसेसयति, ता एएणं बच्चद, किं निमित्तं सो तेसु कम्मासवेसु बट्टमाणो अणेगरूवाओ जोणीओ संसरति ?, भण्णइ,'इमस्स चेव जीवियस्स' इमस्स चेव माणुस्सगस्स, जीविजइ तेण णेहपाणवमणविरेयणअब्भंगणण्हाणसिरावेहादीणि करेइ, रसायणाणि य उव जिजइ, परबलभयाओ बलं पोसेइ, तनिमित्तं च दंडकुडंडेहिं जाणवतं पीडेति, परिवंदणं नाम छत्ती अविलिओ होहामि, वण्णोवा मे भवि| स्सइ, तेण णेहमाईणि करोति, मल्लजुद्धे वा संगामे वा संसारादि चलकरं भोत्तूर्ण णित्थरिस्सामि तेण सत्ते-हणति, इदाणिं माणणा| निमित्त, जो णं अब्भुट्ठाणादी ण करोति तस्स बंधवहरोहसनस्सहरणादीणि करति, तेण दिट्ठपरकम्मरस अन्भुट्ठाणादीणि करेंति, | अहवा घणं अजिणति बलसंग्रहं करेति विजं वा सिक्खइ वरं परो सम्माणेतो बत्थादीहि, जो बाण सम्माणेह तस्स पंधणादीणि | करेइ, वर भयं विणीय होइ। इयाणिं जाइनिमित्तं घिजातियाण जीवंतदाणपाई देंति, जं वा सजातिउत्ति तन्निमित्त आरंभं | | करेइ, मरणेत्ति करदुयादीणि कारवेइ वा, जहा कत्तविरियावराहे, भोयणाएनि करिसणादिकम्मेहिं पवचमाणो तसथावरे विरा। हेति, मंसनिमिनं छगलसगरतित्तिरादि, दुक्खपडियायहेउत्ति आतंकाभिभूता रसगादिहेउं बगतिचिरादीहि य एकुडियाउ पकरेंति निष्हवणादीणि, सहस्सपागओसहसंभारहेउं मूलकंदावि विराहेति, जं वा दुक्खं अस्स जेण विणयइ जहा सीतवासपरिचाणणिमित्वं दीप अनुक्रम [१-१२] १६॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [28]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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