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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [६], उद्देशक [५], नियुक्ति: [२५२...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १९४-१९६]
(०१)
आशातना
प्रत वृत्यक [१९४१९६]
श्रीश्राचा- य तारिसिताए इत्थियाए धम्म कहेइ जतो चरितमावासायणा भाति, वक्खति य-अवि साविया पवातेण., एत्थ संग सूत्र
| भंगा, दवासायणा कति भवति भावासायणा, चतारि भंगा विभासियधा, णो परं आमाएजा, धर्म कहेंतो अणुधम्मकाही| चूर्णिः
निंदति, सो वरातो धर्म चेवण जाणति तो किं कहेदिति ?, णवि सो जहा अहं ससमयपरसमपवियाणो, ण य वादं कहेति, ॥२३९॥
Pण य अक्खिचो, प्रत्ययितुं समत्थो, लजालुप्रो बा, सो ण सडिओ ण हेउओन वा सुमुहो एवं आसादेति, जाइकुलसम्भावादीहिं|
| वा परं आसादेति, परावत्ताओ वा इत्थियायो पुरिसा वा भणति, णवि सुलभो सुसाहुसमागमो, अचिन्तं सरीरेणं धम्मकहीणं | | तेण मुहुचतरं सुणह, ततो ते अणुवरणाए सुणेति, पच्छा इस्थिया भत्तारेण ईसायमाणेणं अणिस्सायमाणेणं वारं २ भणति, ण करे| सिनि हम्मति, पुत्तो पितिमादिणा, भावासायणा णो अनहेर्ड वा कहेति, अहवा तेण कहेति जहा सम्मदिड्डी वा थिरीभवति, जहा | सकेति, तो चउनिहाए कहाए कहेति, अह अक्सिविऊर्ण तरि पुणो विक्खेविउँ सम्म नाणे चरिने तवे विणए, ततो तेसिंग मुठ्ठयरं भावो सादितो भवति, संसारसमई तेण पडिन्तो समूढो भवति, कुसत्थभावितमतिपस्स अण्णतिस्थियस्स पुरतो परि-16 साते असमत्थेण ण भणियवं-सम्वे सेसा कुसिद्धतगा, पुणं अक्खेवे सति अपच्चाईतस्स परिसाए सुपरं मिच्छ भविस्सति, सम्मदिट्ठीणं ओभावणा हीलणा य, बालमरणाणि य पसंसंवस्स दब्वभावासादणा भवति, जेण सुत्तेण तेसिं अन्नयर मरिज, अभूत| उम्भावणं च मिच्छत्तं, णो पाणाई भूपाई जीवाई सत्ताई आसादेज, पंथं गच्छमाणो पुढवि०, तत्थ आउतेउवाऊवणप्फइ छण्ई कायाणं अणंताणं आसातेइ, पुढविमादिसु वा कायेसु ठितो ठियस्स वा कहेति, धूमिताए मिण्णवासे वा गडते पाणाई भ्याई सत्ताई आसादेति, अत एवं भण्णति-णो पाणाई णो भूषाई णो जीवाई पोसत्ताई आसादिज, सो एवं अणासातए-अणासायमाणे
॥२३९॥
दीप अनुक्रम २०७-
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] “आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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