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________________ आगम (४१/१) [भाग-३२] “ओघनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) मूलं [१०८२] .→ “नियुक्ति: [७२८] + भाष्यं [३२२...] + प्रक्षेपं [३०...] . पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/१] मूलसूत्र-[२/१ ओघनियुक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य-विरचिता वृत्ति: प्रत गाथांक नि/भा/प्र ||७२६|| दीप जत्थ नहरणाई छुम्भति, तथा 'चर्मच्छेदः' वपट्टिका, यदिवा 'चर्मच्छेदनक' पिप्पलकादि, तथा 'पहेति योगपट्टका चिलिमिली चेति, एतानि चर्मादीनि गुरोरौपग्रहिकोऽवधिर्भवतीति । जं चण्ण एवंमादी तवसंजमसाहगं जइजणस्स । ओहाइरेगगहियं ओवग्गहियं वियाणाहि ॥ ७२९ ॥ PI यच्चाम्यद्वस्तु, एवमादि उपानहादि, तपःसंयमयोः साधकं यतिजनस्य ओघोपधेरतिरिक्तं गृहीतमौपग्रहिक तद्विजानीहि । इदानी यदुक्तं 'यट्यादि औपग्रहिकं भवति साधूनां' तत्स्वरूपं प्रतिपादयन्नाहRI लट्ठी आयपमाणा विलढि चउरंगुलेण परिहीणा । दंडो बाहुपमाणो चिदंडओ फक्खमेसो उ ॥ ७३०॥ यष्टिरात्मप्रमाणा, वियष्टिरात्मप्रमाणाच्चतुर्भिरङ्गलैन्यूना भवति, दण्डको 'बाहुप्रमाणः' स्कन्धप्रमाणः, विदण्डकः | कक्षाप्रमाणोऽन्या नालिका भवति आत्मप्रमाणाचतुर्भिरङ्गलैरतिरिक्ता, तत्व नालियाए जलधाओ गिज्झइ, लट्ठीए जवणिया बज्झइ, बिलही कहंचि उपस्सयबारघट्टणी होइ, दंडओ रिउवद्धे घेप्पति भिक्खं भमंतेहिं, विदंडओ वरिसाकाले घेपइ, जं सो लहुयरओ होइ कप्पस्स अभितरे कयओ निजइ जेण आउकाएण न फुसिज्जइत्ति । इदानीं यष्टिलक्षणप्रतिपादनायाहएकपर्व पसंसंति, दुपवा कलहकारिया । तिपछा लाभसंपन्ना, चउपहा मारणंतिया ॥ ७३१ ॥ |पंचपदा उ जा लट्ठी, पंथे कलह निवारणी । छच्चपवा य आयंको, सत्तपवा अरोगिया ।। ७३२।। चउरंगुलपइट्ठाणा, अटुंगुलसमूसिया । सत्तपदा उ जा लट्ठी, मत्सागयनिवारिणी ॥ ७३३ ।। अनुक्रम [१०८० AAROORC + walaanurary.orm ~446~
SR No.035032
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages472
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size99 MB
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