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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम [३६..]
आवश्यक
हारिभद्रीया
।।७६६ ॥
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[भाग-३१] “आवश्यक”– मूलसूत्र - १/४ (मूलं + निर्युक्तिः+वृत्तिः)
अध्ययनं [५], मूलं [-] / [गाथा-], निर्युक्तिः [१४२८] भाष्यं [२२८],
काए उस्सग्गंमि य निक्खेवे हुति दुन्नि उ विगप्पा एएसिं दुहंपी पत्तेय परूवणं बुच्छं ॥ २२८ ॥ भा० ) ।। 'काए उस्सम्गंमि य' काये कायविषयः उत्सर्गे च - उत्सर्गविषयश्च एवं निक्षेपे-निक्षेपविषयौ भवतः द्वौ एव विकल्पौद्वावेव भेदौ, अनयोर्द्वयोरपि कायोत्सर्गविकल्पयोः प्रत्येकं प्ररूपणां वक्ष्य इति गाथार्थः ॥ २२८ ॥
arrer उनिक्खेवो वारसओ छकओ अ उस्सगे । एएसिं तु पयाणं पत्तेय परूवणं कुच्छं ।। १४२९ ।। नामं ठवर्णसरीरे गई निकायत्थिकार्य दविएँ य । माउय संगह पजवें मारे तह भावकीए य ॥ १४३० ॥ काओ कस्सह नाम कीरह देहोवि बुचई काओ । कायमणिओवि वुञ्चइ बद्धमवि निकायमाहं ॥ १४३१ ॥ अक्खे वराडए वा कट्ठे पुत्थे य चित्तकम्मे थे । सम्भावमसम्भावं ठेवणाकायं वियाणाहि || १४३२ || लिप्पगहत्थी हत्थित्ति एस सम्भाविया भवे ठवणा । होइ असम्भावे पुण हस्थित्ति निरागिई अक्खो ॥१४३३॥ ओरालियवेडब्बिय आहारगतेयकम्मए चेव । एसो पंचविहो खलु सरीरकाओ मुणेयो || १४३४ ॥ उवि गई देहो नेरइयाईण जो स गइकाओ । एसो सरीरकाओ विसेसणा होइ गइकाओ || १|| ( प्र० ) । जेणुवगहिओ बच्चइ भवंतरं जचिरेण कालेण । एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीरं ।। १४३५ ॥ निययमहिओ व काओ जीवनिकाओ निकायकाओ य । अस्थित्तिबहुपएसा तेणं पंचत्थिकाया उ ।। १४३६ ।। जं तु पुरक्खड भावं दद्वियं पच्छाकडं व भावाओ । तं होइ दव्वदद्वियं जह भविओ दव्वदेवाई ॥ २२९॥ ( भा० ) जइ अस्थिकाय भावो अपएसो हुज अस्थिकायाणं । पच्छाकडुव्व तो ते हविज दव्वत्थिकाया व ॥ २३०॥ (भा०) ||
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५ काबोत्सर्गाध्ययनं कायनिक्षेपः
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।।७६६।।
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पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र -[४०] मूलसूत्र -[०१] आवश्यक मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचिता वृत्तिः