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________________ आगम (२१) “पुष्पिका” – उपांगसूत्र-१० (मूलं+वृत्तिः ) अध्य यनं [१] --------------- ----- मूलं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[२१]उपांगसूत्र-[१०] पुष्पिका मूलं एवंचन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: NGO 460* प्रत सूत्रांक 16 अ०२ समाणे पंचविहाए पजत्तीए पज्जतीभावं गच्छइ, तं जहा-आहारपज्जत्तीए, सरीरपज्जत्तीए, इंदियपज्जत्तीए, सासोसासपजचीए, भासा(मण)पज्जत्तीए। चंदस्स णं भैते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो केवइयं कालं ठिती पन्नता ? गोयमा ! पलिओवर्म बाससयसहस्समब्भहियं । एवं खलु गोयमा ! चंदस्स जाव जोतिसरनो सा दिवा देविड़ी। चंदे ण भंते ! जोइसिंदे जोइसिराया वाओ देवलोगाओ आउक्खएणं चइचा कहिं गच्छिहिति २१ गोयमा ! महाविदेहे वासे सिजिहिति । एवं खलु जैबू समणेण० निक्खेवओ ॥१॥ .जइणं भंते ! समगेणं भगवया जाब पुफियाणं पढमस्स अज्झयणस्स जाव अयमहे पन्नते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुफियाणं समणेणं भगवता जाव संपत्तेणं के अहे पन्नते? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं २ रायगिहे नाम, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, समोसरणं, जहा चंदो तहा सूरोऽवि आगओ जाव नट्टविहिं उबदसित्ता पडिगतो । पुत्भवपुच्छा, सावत्थी नगरी, सुपतिढे नाम गाहावई होत्या, अड़े, जहेब अंगती जाब विहरति, पासो समोसढो, जहा अंगती तहेव पवइए, तहेच विराहियसामने जाव महाविदेहे वासे सिज्झहिति जाब अत०, खलु जंबू ! समणेणं० निक्खेवओ ॥२॥ .जहण भंते ! समणेणं भगवता जाव संपत्तणे उक्खेवतो भाणियहो, रायगिहे नगरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, निक्षेवओ' त्ति निगमन, तच्च प्रागुपदर्शितम् ॥ तचे अज्झयणे शुक्रवक्तव्यताऽभिधीयते-'उक्वेघओ' ति उत्क्षेपःप्रारम्भवाक्य, यथा-जहण भते! समणे] जाप संपत्तेणं दोच्चस्स अज्झयणस्त पुफियाणं अयमढे पन्नत्ते, तशस्स अन्झ यणस्स भंते ! पुफियाणं समणेण जाध संपत्तण के बढे पन्नत्ते ! एवं खलु जंबू! तेणं कालेज रायगिहे नयरे इत्यादि। 1800 अनुक्रम [१-३] अ०३ Far FamaBPrimUDOM -21 Alibram.org अध्ययनं-१- 'चन्द्र' आरभ्यते [मूलसूत्र १-3] अध्ययनं-२- 'सूर्य' आरब्धं एवं परिसमाप्तं [मूलसूत्र ४] अध्ययन-३- 'शक' आरभ्यते मूलसूत्र ५-७] ~604
SR No.035026
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 26 Niryavalika Kalpvatansika Pushpika Pushpchulika Vrushnidasha Mool evam Vrutti Chatusharan Aaturpratyakhyan Bhaktparigna Tandulvaicharik Sanstarak Gacchachar Ganivijja Devendrastav Mool evam Chhaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages312
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nirayavalika
File Size66 MB
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