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आगम
(२०)
“कल्पवतंसिका” – उपांगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं --------
------------------------- मूलं [३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित:मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[२०], उपांगसूत्र-[०९] कल्पवतंसिका मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति:
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पवइए अगगारे जाए जाच गुत्तभयारो । तते णं से पउमे अणगारे समगस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमादियाई एकारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहुर्हि चउत्थछट्टम जाव विहरति । तते णं से पउमे अगगारे तेणं ओरालेणं जहा मेहो तहेव धम्मजागरिया चिता एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं आपूच्छित्ता विउले जाव पाओवगते समागे तहाख्वं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई, बहुपडिपुग्णाई पंच वासाई सामन्नपरियाए, मासियाए सलेहणाए सहि भत्ताई आणुपुटीए कालगते, थेरा ओत्तिन्ना भगवं गोयमं पुच्छइ, सामी कहेइ जाव सहि भत्ताई अगसणाए छेदित्ता आलोइय० उड्डे चंदिमसोहम्मे कप्पे देवत्ताए उवचने दो सागराई । से णं भंते ! पउमे देवे तातो देवलोगानो आउक्खरणं पुच्छा, गोयमा ! महाविदेहे वासे जहा दढपइन्नो जाव अंत काहिति । तं एवं खलु जंबू ! समणे णं जाव संपत्तेणं कप्पवडिसियाणं पहमस्स अझयगस्स अयम? पत्ते ति बेमि ॥१॥
जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं कप्पडिसियाण पदमस्स अज्झयणस्स अयपट्टे पनत्ते, दोचरस भंते ! अज्झयणस्स के अट्टे पप्णते? एवं खलु जंबू तेणं कालेणं २ चंपा नाम नगरी होत्या, पुनभहे चेइए, कूणिए राया, पउमावई देवी । तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कोणियस्स रनो चुल्लमाउया सुकाली नाम देवी होत्था । तीसे ण मुकालोए पुत्ते मुकाले नाम कुमारे । तस्स णं मुकालस्स कुमारस्स महापउमा नाम देवी होत्था, सुकुमाला। तते णं सा महाप उमा देवी अन्नदा कयाई तसि तारिसगंसि एवं तहेव महापउने नाम दारते, जाब सिझिहि ति, नवरं ईसाणे कप्पे उववाओ उकोसहिई भो, ते एवं खलु जंबू ! सम गेणं भगवया जाव संपत्तेण । एवं सेसा वि अट्ट नेयवा । मातातो
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मूलसूत्र-४,५
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