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________________ आगम “निरयावलिका” – उपांगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:) अध्य यनं [१] ------------------ ------- मूलं [१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१९]उपांगसूत्र-[०८] निरयावलिका मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: निरया वलिका प्रत सूत्रांक --- यस्स रनो नंदाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था, सोमाले जाव सुरूवे साम० दंडे जहा चित्तो जाव रज्जधुराए चिंतए यावि होत्था । तस्स णं सेणियस्स रनो चेल्लणा नाम देवी होत्था, सोमाले जाब विहरइतिते ण सा चिल्लणा देवी अन्नया कयाई तंसि तारिसयंसि वासघरैसि जाव सीह मुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, नहा पभावतो, जाव सुमिणपाढगा पडिविसन्जिता, जाब चिल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सए भवणे तेणेव अणुपविट्ठा। तते णं नोसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाई तिण्डं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए-धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव जम्मजोवियफले जाओ णं सेणियस्स रनो उदरवलीमसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भजितेहि य सुरं च जाव पसन्नं च आसाएमाणीओ जाव परि- । भाएमाणीओ दोहलं पविणेति । तते णं सा चेल्लणा देवी तसि दोहलसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुगसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुइतमुही ओमंथियनयणवयणकमला जहोचियं पुष्फबत्थगंधमलालंकार अपरिझुंजमाणी करतलमलियन्न कमलमाला ओहतमणसंकप्पा जाव झियायति । तते ण तीसे चेल्लणाए देवीए अंगपडिया अनुक्रम 'सोल्लेहि य' त्ति पक्वैः ‘तलिपहि' ति स्नेहेन पक्वैः, भजिपहि' भ्रष्टैः पसन्न च' द्राक्षादिद्रव्यजन्यो मनःप्रसत्तिहेतुः 'आसाएमाणीओ' त्ति ईषत्स्वादयन्त्यो बहु च त्यजन्त्य इचखण्डादेरिच, 'परिभापमाणीओ' सर्वमुपभुञ्जानाः (परस्परं ददन्त्यः) 'सुक्क' त्ति शुष्केव शुष्कामा रुधिरक्षयात , 'भुक्ख' त्ति भोजनाकरणतो बुभुक्षितेव, 'निम्मंसा ' मांसोपचयाभावतः, 'ओलुग्ग' ति अवरुग्णा--भनमनोवृत्तिः, 'ओलुग्गसरीरा' भनदेहा, निस्तेजा-गतकान्तिः दीमा-विमनोवदना, पाण्डुकितमुखी-पाण्डुरीभूतवदना, 'ओमंथिय' ति अधोमुखीकृत, उपहतमनःसङ्कल्पा-गतयुक्तायुक्तविवेचना, ॥९ ॥ SANEAREST मूलसूत्र-१० ...चेल्लणापुत्र कोणिकस्य गर्भावस्था, जन्म एवं राज्ञ-अवस्थाया: वृत्तान्त: ~31~
SR No.035026
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 26 Niryavalika Kalpvatansika Pushpika Pushpchulika Vrushnidasha Mool evam Vrutti Chatusharan Aaturpratyakhyan Bhaktparigna Tandulvaicharik Sanstarak Gacchachar Ganivijja Devendrastav Mool evam Chhaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages312
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nirayavalika
File Size66 MB
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