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आगम
(२८)
"तन्दुलवैचारिक" - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं+संस्कृतछाया)
----------- मूलं [-],गाथा [१] ------------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[२८] प्रकीर्णकसूत्र-०५] तन्दुलवैचारिक मूलं एवं संस्कृतछाया:
चारिकेट।
प्रत
॥३१॥
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सूत्रांक
414--24-7-5-4564
||१||
॥ अन्ल यपाल५५३५ ॥२॥
14.यता
सूचा निवरिपजरामरणं बंदित्ता जिणवरं महावीरं । वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥ १॥ ४४८ ॥ सुणह | गणिए दस दसा वाससयाउस्स जह विभवति । संकलिए वाससए (वोगसिए)जं चाऊ सेमयं होई ॥२॥ ॥४४९॥ जत्तियमिते दिवसे जत्तिय राई मुहत्त ऊसासे । गम्भंमि वसह जीवो आहारविहिं च वोच्छामि ॥३॥
(द्वारगाथा)४५०॥ दोन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्सरि चेव । गम्भंमि वसइ जीवो अद्धमहोरत्तमन्नं च ॥४॥ द॥ ४५१ ॥ एए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गन्भवासंमि । हीणाहिया उ इत्तो उवधायचसेण जायंति ॥५॥
॥ ४५२ ।। अट्ठ सहस्सा तिन्नि उ सया मुहुत्ताण पण्णवीसा य । गभगओ वस: जीवो नियमा हीणाहिया साइत्तो॥६॥ ४५३ ।। तिन्नेव य कोडीओ चउदस य हवंति सयसहस्साई । दस व सहस्साई दोन्नि सया|
अथ तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ॥ ५ ॥ निर्जीणंजरामरणं वन्दित्वा जिनवर महावीर । वक्ष्ये प्रकीर्ण कमिदं तन्दुलचारिक नाम ॥ १ ॥ शृणुत गणिते वर्षशतायुष्करूप यथा दश दशा विभज्यन्ते । सङ्कलिते वर्षशते (व्यवकलिते) यच्चायुः शेषं भवति ॥ २ ॥
यावन्माधान दिवसान यावती रात्रीमुहूर्तान उपहासान । गर्भ वसति जीवः (तान ) आहारविधि च वक्ष्ये ॥ ३॥ अहोरात्रशत । पसंपूणे सप्तसप्तति च । गर्भ वसति जीवोऽर्द्धमहोरात्रमन्यच ॥ ४ ॥ एतान्यहोरात्राणि नियमान् जीवस्य गर्भवासे । हीनाधिकानीत ॥ ३१ ॥
उपचातबशेन जायन्ते ॥ ५॥ अष्ट सहस्राणि श्रीणि तु शतानि मुहूतानां पञ्चविंशसिं च । गभंगतो वमति जीवो नियमान होनाधिका |
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दीप
अनुक्रम
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8 ॐx
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| भगवंत वंदना, दश दशाया: प्रतिज्ञा
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