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________________ आगम (२७) “भक्तपरिज्ञा” – प्रकीर्णकसूत्र-४ (मूलं+संस्कृतछाया) ------------------------------------- मूलं [१२२] ------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[२७] प्रकीर्णकसूत्र- [०४] भक्तपरिज्ञा मूलं एवं संस्कृतछाया: + प्रत सूत्रांक ||१२२|| 4 3॥ १२१ ॥ ३९३ ॥ साकेअपुराहिवह देवरई रज्जमुक्खपभट्ठो। पंगुलहेतुं छुढो बुढो अ नईइ देवीए ॥ १२२॥ [॥ ३९७ ॥ सोअसरी दुरिअदरी कवडकुडी महिलिआ किलेसकरी । पहरविरोअणअरणी दुक्खखणी सुक्खपरिवक्खा ॥ १२३ ।। ३९८ ॥ अमुणिमणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासिउं तरह । वम्महसरपसरोहे विहिच्छोहे मयच्छीण ? ।। १२४ ॥ ३९९ ।। घणमालाओ व दूरुनमंतमुपओहराउ वढुति । मोहविसं महिलाओ3. अलकविसं व पुरिसस्स ॥ १२५ ॥ ४०० ॥ परिहरसु तओ तार्सि दिहि दिट्ठीविसस्स व अहिस्स । जं रम-1 गणिनपणयाणा चरिसपाणे विणासंति ॥ १२६ ।। ४०१॥ महिलासंसग्गीए अग्गी इव जं च अप्पसारस्स | मयणं व मणो मुणिणोऽविहंत सिग्घं चि विलाइ ॥ १२७ ॥ ४०२ ॥ जइवि परिचत्तसंगो तवतणुअंगो ॥ १२० ॥ रमणीनां दर्शनमेव सुन्दरं कृतं सामसुखेन । गन्ध एव सुरमिर्मालत्या मर्दनं पुनर्विनाशः ॥ १२१ ॥ साकेतपुराधिपतिदेवरती राज्यसुखपभ्रष्टः । पहेतोः क्षिप्तो न्यूटश्च नद्या देव्या ।। १२२ ॥ शोकसरित् दुरितदरी कपटकुटी महिला छेशकरी | रवि-15 रोचनाऽरणिर्दुःखखनिः सुखप्रतिपक्षा ॥ १२३ ॥ अज्ञातमन:परिकर्मा सम्यक् को नाम नटुं शक्नोति । मन्मधशरप्रसरौघे दृष्टिक्षोभे मृगाझीणाम् ।।। १२४ ।। धनमाला इव दूरोन्नमत्सुपयोधरा वर्धयन्ति । मोह विषं महिला अलकेविषवत्पुरुषस्य ।। १२५ ॥ परिहर तत-| तासो राष्टिं दृष्टिविषस्येवाहेः । यद् रमणीनयनबाणाश्चारित्रमाणान् विनाशयन्ति ।। १२६ ॥ महिलासंसर्गेण अग्रेरिव यचामसारस्य । मदन-15 * वन्मनो मुनेरपि हन्त ! शीघ्रमेव विलीयते ।। १२७ ।। यद्यपि परित्यक्तसङ्गस्तपसन्वालथाऽपि परिपतति । महिलासंसर्या कोशाभवनोपित दीप अनुक्रम [१२२] JHERaatsimination ~163~
SR No.035026
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 26 Niryavalika Kalpvatansika Pushpika Pushpchulika Vrushnidasha Mool evam Vrutti Chatusharan Aaturpratyakhyan Bhaktparigna Tandulvaicharik Sanstarak Gacchachar Ganivijja Devendrastav Mool evam Chhaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages312
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nirayavalika
File Size66 MB
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