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इस प्रकाशन ( भाग - २६) की विकास- गाथा
“सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि" के इस २६ वे भागमें हमने १४ आगमो को शामील किया है । जिसमे पांच उपांगसूत्र और नव प्रकीर्णकसूत्र है | उपांग सूत्र की यह प्रत सबसे पहले “निरयावलिका” के नामसे सन १९२२ (विक्रम संवत १९७८) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई । इस प्रतमे पांच उपांग सूत्र एक-साथ शामिल किये गये थे, १९-निर्यावलिका, २० कल्पवतंसिका, २१ - पुष्पिका, २२ पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा तथा चतुःशरण आदि दश प्रकिर्णाको की प्रत संस्कृत छाया के साथ सन १९२७ (विक्रम संवत १९८३) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, संपादक महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब | उन दश प्रकीर्णकमे से ९ प्रकीर्णको को ये २६ वे भागमे हमने रक्खे है। २४.चतुः शरण, २५.आतुरपरत्याख्यान, २६. महाप्रत्याख्यान, २७. भक्तपरिज्ञा, २८. तंदुलवैचारिक, २९. संस्तारक, ३०. गच्छाचार, ३१. गणिविज्जा और ३२. देवेंद्रस्तव.
* हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५ आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की [ पूर्वाचार्य] पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स् करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक आदि लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन एवं सूत्र चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस [-] दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है ।
हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है । अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है |
शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म०सा० की प्रेरणासे और श्री वर्धमान जैन आगममंदिर, पालिताणा की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-२६ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है ।
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....मुनि दीपरत्नसागर.