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________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” – उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] ---------------- ------ मूलं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-२३]उपांगसूत्र-[१२] वृष्णिदशा मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक इहेब अंबुद्दीवे २ महाविदेहे चासे नाते नगरे विमुद्धपिइसे रायकुले पुत्तचाए पञ्चायाहिति । तते ण से उम्मकबालभावे विण्णयपरिणयमिते जोवणगमणुष्पत्ते तहारूवाणं घेराण अंतिए केवलबोहिं युज्झित्ता अगाराको अणगारिय पद्धजिहिति । से तत्थ अणगारे भविस्सति । इरियासमिते जाव गुत्तभयारी से तस्य बहुई चउत्पछट्टहमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तबोकम्मेहि अप्पाणे भावेमाणे पहुई वासाई सामण्णपरियागं पाउणिस्सति २ मासियाए सलेहणाए अचाणं झुसिहिति २ सहि भत्ताई अणसणाए छेदिहिति । जस्सहाए कीरति णम्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जाव अदंतवणए अच्छत्तए अणोवाहणाए फ लहसेज्जा कसे जा केसलोए बंभचेरखासे परधरपवेसे पिंडबाउलडावलढे उच्चावया य गामकंटया अहियासिज्जति, तमह आराहेंति, आराहिता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिति बुझिहिति जाव सबटुक्खाणं अंतं काहिति । एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महा० जाव निक्खेवाएवं सेसा वि एकारस अज्झयणा नेयवा संगइणी अणुसारेण अहीणमइरित एक्कारसम वि ॥ ॥ पंचमो वग्गो सम्मत्तो॥ अनुक्रम [१-३] 'सिनिमहिति' सेत्स्यति निष्टितार्थतया, भोत्स्यते केवलालोकेन, मोश्यते सकलकमीशैः, परिनिर्वास्थति-स्वस्थो भविष्यति सकलकर्मकृतविकारविरहितया, तात्पर्थमाह-सर्वदुःखानामन्तै करिष्यति । - रचाते प्र. PMInmarary.org .अत्र अध्ययनं -१. 'निषध' परिसमाप्तं अत्र अध्ययन २-१२ 'मायनि,वध आदि' आरब्धानि एवं परिसमाप्तानि [मूलसूत्र ४] ~100~
SR No.035026
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 26 Niryavalika Kalpvatansika Pushpika Pushpchulika Vrushnidasha Mool evam Vrutti Chatusharan Aaturpratyakhyan Bhaktparigna Tandulvaicharik Sanstarak Gacchachar Ganivijja Devendrastav Mool evam Chhaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages312
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nirayavalika
File Size66 MB
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