________________
आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः )
वक्षस्कार [३], --------------------- --------------------------------- मलं [४५] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
प्रत
श्रीजम्बूद्वीपशा-1
सूत्रांक
३वक्षस्कारे मागपतीथैकुमारसाधनं म्.
न्तिचन्द्री या वृति॥१९९॥
[४५]
गाथा:
पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहिले देसणहं सिर जाव अंजलि कटू भरहं रायं जपणं विजएणं बद्धावेइ २ चा एवं वयासी अभिजिए णं देवाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वांसे पुरच्छिमेणं मागह तित्थमेराए तं अण्णं देवाणुप्पिआणं विसवासी अहणं देवाणपिआणं आणतीकिंकरे अहणं देवाणुप्पिआणं पुरक्छिमिले अंलबाले तं पविल्छंतु णं देवाणुप्पिा ! ममं इमेआरूवं पीइदाणंतिकट्ठ. हार माडं कुंडलाणि अ कडगाणि अ जाब मागहतित्थोदगं च उवणेइ, तए णं से भरहे राया मागहतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ २ ता मागह तित्यकुमारं देवं सकारेइ सम्माणेइ २ चा पडिविसजेइ, तए णं से भरहे राया रह परावतेइ २ ता मागहतित्थेणं लवणसमुदाओ पचुत्तरइ २ ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिआ उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता तुरए णिगिण्हइ २ त्ता रहं ठवेइ २ रहाओ पञ्चोकहति २त्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उबागल्छति २ मजणधरं अणुपविसइ २ चा जाव ससिब पिअदसणे गरवई मजणघराओ पडिणिक्खमह २ ता जेणेव भोअणमंडवे तेणेव उवागच्छ२त्ता भोभणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभ पारेइ २ ता भोअणमंडवाओ पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव बाहिरिआ उवठ्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीअइ २त्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ २ त्ता एवं बवासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया उस्सुक्क उकरं जाव मागहतित्यकुमारस्स देवस्स अट्टाहि महामहिमं करेह २ ता मम एअमाणत्ति पञ्चप्पिणह, तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट जाव करेंति २ चा एअमाणत्ति पञ्चप्पिणंति, तए णं से दिवे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहिअक्खामयारए जंबूणवणेमीए णाणामणिखुरप्पथालपरिगए मणिमुत्ताजालभूसिए सणंदिघोसे सखिखिणीए दिब्बे तरुणरविमंडलणिभे णाण्णा
दीप
e0000000000008092easaeases
अनुक्रम [६२-६७]]
॥१९९॥
Deeasesedeosa
~53