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आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः )
वक्षस्कार [3], ------------------------------------------------------- मलं [६१] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
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श्रीजम्यू
वक्षस्कारे आपातकिरातसाधनं
द्वीपशान्तिचन्द्रीया वृचिः
सुत्रांक
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॥२४५॥
गाथा:
चिलामा तेणेष म्यागच्छति २ आवाइपिसाप एवं वासी-एस ण देवाशुविधा ! सरहे राका महितीप जाय जो यस सका केप वेषेण का आप अतिप्पोपेण बाजार उपद्दवित्तए वा पडिसेहिलप बा हावि अ ते अम्हेविं देवाणुपिया! तुम्भ पिभट्ठयार भरहस्स रण्णो अवसग्गे कए, गच्छह तुम्भे देवाणुप्पिा ! हाया छपवालिकम्मा कयकोउवमंगलपायपिछत्सा उपासाङगा ओचूलगलिअच्छा अगाई बराई रवणाई गहाय पंजलिजा पायवडिभा भरई रायाणं सरणं उबेह, पणिबइअवच्छला खलु उत्तमपुरिसा पवि मे भरहस्स रण्यो अंलिआओ भथमिसिकटु, एवं बदित्ता जामेव दिसि पाउब्यूआ नामेव विसि पढिगया । सए से आयातनिहाया मेहमुहेहि गागकुमारेहिं देवेहिं एवं कुत्ता समाणा उखाए उठेलि २ सा पहाया कबपतिकाम्या कक्कोडमंगलपावच्छित्ता सापडसाडगा ओचूनगगिअच्छा अगाई बराई रमाई गहाय जेणेव भरहे राबा तेणेव उकागच्छंति २ सा करयलपरिग्महिलं जाय मस्थए बंजर्सि का भरदं राये जपणं विजएषां बद्धाविति २ ता अमगाई वराई रवणाई उक्णेति र सा एवं बवासी-बसुहर गुणहर जयहर, हिरिसिरिधीकिचिधारकरिव । लक्षणसहस्सधारक सत्यमिक् मे चिरं धारे ॥ १॥ यवइ गयवइ गरवइ णवणिहिवइ भरहवासपढमबई । बचीसजणवयसहस्सराय सामी चिरं जीव ॥२॥ पळमणरीसर ईसर हिमईसर महिमिधासहस्साणं । देवसयसाहसीसर चोइसरयणीसर जसंसी ॥३॥ सागरगिरिमेराग उत्तरवाईणमभिजि तुमए । ता अम्हे देवाणुस्फिअस्स विसए परिवसामो ॥४॥ही मं देवासुप्पिाणं इसी जुई असे बले वीलिए पुलिसकारपरचमे दिन्या देवसुई-दिवे देशाभाके उसे पत्ते अमिसमग्णालय, तं विद्या देवाणुपिआण इसी व जाये अमिसमण्णागर, त खामेनुक देवाणुप्पिा! खमंतु काशुप्पिला! संगम देवापुष्पिना माई सुनो २ एकरक्या
दीप अनुक्रम [९१-९५]
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२४५॥
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