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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[१५५
-१५६]
दीप
अनुक्रम
[३६२
-३६३]
पदं [१०],
----- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], [-------------- • मूलं [१५५-१५६]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१५],उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
प्रज्ञापना
याः मल
य०वृत्ती.
॥ २३०॥
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्ति:)
-
भंते ! अचरमस्स व चरमाण य चरमन्तपदेसाण य अचरमन्तपदेसाण व दट्टयाए परसट्टयाए दबट्टपएसद्वधाए कमरे २ हिंतो अ० ० ० वि० १, गोयमा ! सवत्थोवे अलोगस्स दबट्टयाए एगे अचरमे चरमाई असंखिजगुणाई अचरमं चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई, पएसइयाए सबत्थोवा अलोगस्स चरमन्तपदेसा अचरमन्तपएसा अणन्तगुणा चरमन्तपसा य अचरमन्तपदेसा य दोवि विसेसाहिया, दवदृपएसपाए सहत्थोवे अलोगस्स एगे अचरमे चरमाई असंखेजगुणाई अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई, चरमन्तपएसा असंखेजगुणा, अचरमन्तपसा अणन्वगुथा, चरमन्तपसा य अचरमन्तपसा य दोवि विसेसाहिया ।। लोगालोगस्स णं भंते ! अचरमस्स य चरमाण य चरमन्तपरसाण य अचरमन्तपसाण थ दवट्टयाए परसट्टयाए दबट्टपरसट्टयाए कमरे २ हिंतो अ० ० तु० वि० १, गोयमा ! सवत्थोवे लगालोगस्स दाए एगमेगे अचरमे, लोगस्स चरमाई असंखेज्जगुणाई, अलोगस्स चरमाई विसेसाहियाई लोगस्स (य) अलोगस्स य अचरमं यः चरमाणि य दोषि विसेसाहियाई, पएसट्टयाते सवत्थोवा लोगस्स चरमन्वपदेसा, अलोगस्स चरमन्वपदेसा विसेसाहिआ, लोगस्स अचरमन्तपएसा असंखेजगुणा, अलोगस्स अचरमन्तपएसा अणन्वगुणा, लोगस्स य लोगस्स प चरमन्तवदेसा च अचरमन्तपदेसा य दोवि विसेसाहिया । दवट्ठपएसडबाए सबत्थोवे लोगालोगस्स दबट्टयाए एगमेगे अचरमे, लोगस्स चरमाई असंखेजगुणाई, अलोगस्स चरमाई विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स य अचरमं मानिय दोषि विसेसाहियाई, लोगस्स चरमन्तपदेसा जसंखेअगुणा, अलोगस्स य चरमन्तपसा विसेसाहिया, लोगस्स
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१० घरमा
चरमपदे
रत्नप्रभादिश्वरमादीनामल्पबहुत्वं सू.
१५५-१५६
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