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________________ आगम (१५) प्रत सूत्रांक [ २८१ २८१] दीप अनुक्रम [५२७ -५२८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः ) पदं [२२], ------ उद्देशकः [-], ------------- दारं [-], ------- - मूलं [ २८१-२८१२] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [१५],उपांगसूत्र-[४] “प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः वाधिकृत्य जीवानामेकपृथक्त्वाभ्यां कर्मबन्धत्वमुपदिदर्शयिषुराह— "जीवे गं भंते! पाणातिवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधति ?, गो० ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविधबंधए वा, एवं नेरइए जान निरंतरं वैमाणिते, जीवा णं भंते ! पाणातिवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधति १, गो० ! सत्तविहबंधगावि अट्ठविहबंधगावि, नेरइया णं भंते! पाणातिवाएणं कह कम्मपगडीओ बंधति १, गो० । समेवि ताव होज्जा सतविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगाय अविबंध य अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य, एवं असुरकुमारावि जाव धणियकुमारा पुढविआउतेउवाउवणफइकाइया य, एए सवेवि जहा ओहिया जीवा, अवसेसा जहा नेरइया, एवं ते जीवेगिंदियवज्जा तिष्णि तिण्णि गंगा सवत्थ भाणियवत्ति, जाय मिच्छादंसणसल्ले, एवं एगत्तपोहत्तिया छत्तीसं दंडगा होति । (सूत्रं २८१) जीवे णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे कति किरिए ?, गो० सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए, एवं नेरइए जाव बेमाणिए, जीवा णं भंते ! णाणावरणिजं बंधमाणा कति किरिया० १, गो० ! सिय तिकिरिया सिय चउकिरिया सिय पंचकरियावि, एवं नेरइया निरंतरं जाव वैमाणिया, एवं दरिसणावरणीयं वेदणिजं मोहणिजं आउयं नामं गोतं अंतराइयं च अट्ठविहकम्मपगडीतो माणितदाओ, एगचपोहत्तिया सोलस दंडया भवन्ति, जीवे णं भंते ! जीवातो कति किरिए १, गो० सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकरिए सिय अकिरिए, जीवे णं मंते ! नेरइयाओ कति किरिए ?, गो० ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय अकिरिए, एवं जाव थणियकुमाराओ, पुढविकाइयातो आउकाइयातो तेउकाइयातो वाउकाइयवण फइकाइयोइंदियते इंदियचउरिंदियपं चिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्सातो जहा For Parts Only मूल-सम्पादकस्य स्खलनत्वात् अत्र सूत्र क्रमांक '२८१' द्वि- वारान् मुद्रितं, तस्मात् मया '२८१-२' इति संज्ञा दत्वा सूत्र-क्रमांक लिखितं *** जीवेण / जीवाभ्याम् वा विविध कारणात् कर्मप्रकृत्तिबन्धः ~ 481~ waryra
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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