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आगम
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“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२१], -------------- उद्देशक: 1, ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२६९] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
२१शरीरपदं
सूत्रांक [२६९]
गाथा:
प्रज्ञापना-1ञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरावगाहनामानमाह-'मणुस्सोरालियसरीरस्स ण'मित्यादि, कण्ठ्यं, नवरं त्रीणि गव्यूतानि देव- याः मल-18|कुर्वाद्यपेक्षया, तदेवमौदारिकशरीरस्य विधयः संस्थानानि प्रमाणानि चोक्तानि, सम्प्रति तानि क्रमेण वैक्रियस्या- य० वृत्ती. भिधित्सुराह॥४१४ा
उबियसरीरे णं भंते । कतिविधे पं० १, गो०। दुविधे पं०, ०–एगिदियवे उच्चियसरीरे य पंचिंदियवेउवियस०, जति एगिदियवेउब्वियसरीरे किं वाउक्काइयरगिदियवेउवियसरीरे अबाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे ?, गो० ! वाउकाइयएगिदियवेउवियसरीरे नो अवाउकाइयएगिदियवेउवियसरीरे, जइ वाउकाइयवेउब्वियसरीरे किं सुहुमवाउकाइयवेउवियसरीरे बायरवाउकाइयवेउवियसरीरे?, गो०! नो सुहुमवाउकाइयएगिदियवेउवियसरीरे बादरखाउकाइयएगिदियवेउबियस०, जह बादरवाउकाइयएगिदियवेडबियसरीरे किं पञ्जत्ववादरखाउकाइयरगिदियबेउवियसरीरे अपजत्तबादरवाउकाइयएगिदियवेउबियसरीरे, मो01 पञ्जत्तवादरखाउकाइयएगिदियवेउबियसरीरे नो अपजत्तबादरवाउकाइयएगिदियवेउवियसरीरे, जति पंचेंदियवेउवियसरीरे कि नेरइयपंचिंदियवेउवियसरीरे जाव किं देवपंचिदियवेउवियसरीरे ?, गो०! नेरदयपंथिंदियवेउबियसरीरेवि जाव देवपंचिंदियवेउधियसरीरेवि, जइ नेरइयपंचिंदियवेउबियसरीरे किं रयणप्पभापुढविपंचिंदियवेउविष० जाब किं अधेसत्तमापुढविनरइयर्प० चेउवियसरीरे, गो० रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिदियघेउवियसरीरेवि जाव अधेसचमापुढविनेरइयपंचिं० वेउवियसरीरेऽवि, जइ रयणप्पभापुढविनेरइयविउवियसरीरे कि पजत्तगरय० नेरइयवेउ०स० अपजत्तगरय
दीप अनुक्रम [५१२-५१५]
॥४१४॥
| अथ वैक्रियशरीरस्य शरीर-संस्थान-अवगाहना सम्बन्धी वक्तव्यता
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