________________
आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२१], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं --------------- मूलं [२६७] + गाहा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [२६७]
गाथा
Recenecembeen
भंते ! कतिविधे पं०१, गो.! पंचविधे पं०, त-एगिदियओरालियसरीरे जाव पंचिंदियओरालियसरीरे, एगिदियओरालियसरीरे भंते ! कतिविधे पं०१, गो०! पंचविहे पं०, तं-पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे जाव वण'फइकाइयएगिदियओरालियसरीरे, पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पं०१, गो०! दुविहे पं०, तं०-सुहुमपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे बादरपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे य, सुहुमपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे गं भंते ! कतिविधे पं०१, गो! दु.५०,०-पज्जत्तगसुद्मपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे य अपञ्जत्तगसुहुमपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे थ, बादरपुढविकाइयावि एवं चेव, एवं जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालियत्ति, बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविधे पं०१, गो! दुविधे पं०, तं०-पञ्जतचेईदियओरालियसरीरे य अपजत्चगबेइंदियओरालियसरीरे य, एवं तेइंदिया चउरिदियादि । पंचिंदियओरालियसरीरे गं भंते ! कतिविधे पं०१, गो! दुविधे, पं० त०-तिरिक्खजोणियपंचिदियओरा०मणुस्सपंचिंदियओरा०,तिरिक्खजोणियपर्चिदियओरालियसरीरे णे भंते ! कतिविधे पं०१, गो! तिविधे पं०,०-जलयरतिरिक्खजोणियपंचिं० ओरालियों थलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरा० खयरति. पंचिं० ओरा०, जलयरतिरि०पं० ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविधे पं०, गो! दुविधे, पं०, तं०-संमुच्छिमजल.५०तिरि० ओरालि० गब्भवकंतिजलयरपंचि० तिरि० ओरालियसरीरे य, समुच्छिमजल. तिरि० पंचिंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कति विधे पं०१, गो! दुविहे पं०, तं०पजत्तगसंमुच्छिमपंचिं० तिरि०ओरा० अपजत्तगसमुच्छिम पं०ति ओरालि., एवं गम्भवतिएवि, थलयरपंचिं.
दीप अनुक्रम [५०९-५१०]
| अथ औदारिकशरीरस्य भेद-प्रभेदा: आरभ्यते
~419~