SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२०], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२६३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत मज्ञापनाया: मलयवृत्ती. २०अन्तक्रियापदे | तीर्थकरत्वाप्तिः सूत्रांक [२६३] ॥४०॥ सू. २६३ दीप उपसंताई हति से प रयणप्पभापुढवीनेरइए रयणप्पभाघुटषीनेरइएहितो अजंतर उच्चटित्ता तित्थगरसं णो लभेजा, से तेणडेणं गोयमा। एवं बुधइ-अत्यंगतिए लमेशा अत्थेगतिए णो लभेजा । एवं सकरप्पभाजाववालुयष्पभापुढवीनेरइएहिंतो तिस्थगरसं लभेजा । पंकप्पभापुढवीनेरइए णं भंते ! पंकप्पभा०हितो अणंतरं उबविता तिस्थगरतं लभेजा, गोयमाणो इणढे समडे, अंतकिरियं पुण करेजा, धमप्पभापुढवी० पुच्छा, गोयमा! जो इण? समढे, सबविरई पुण लमे. जमा, तमप्पभापुढषीपुच्छा, विरयाविरई पुण लभेज्जा, अहेसत्तमढवीपुच्छा, गोयमा! णो इणढे समडे, सम्पत्तं पुण लभेजा । असुरकुमारस्स पुच्छा, णो इणढे समहे, अंतकिरियं पुण करेजा । एवं निरंतरं जाव आउकाइए । तेउकाइए गं भंते ! तेउकाइएहितो अणंतरं उत्पट्टित्ता उववज्जेजा (तित्थगरत्तै ल.), गोणो० ति०, केवलिपमत्तं धर्म लभेजा सवणयाते, एवं बाउकाइएवि, वणस्सइकाइए णं पुच्छा, गो०!णोति०, अंतकिरियं पुण करेजा, बेइंदियतेइंदियचरिदिए णं पुच्छा, गो! नो. ति०, मणपज्जवनाणं उप्पाडेजा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणूसवाणमंतरजोइसिए णं पुच्छा, गो! णो ति०, अंतकिरियं पुण करमा, सोहम्मगदेवेणं भंते ! अणतरं चयं चइता तिस्थगरल लभेजा, गो० अत्थे ल० अत्थे नो ल०, एवं जहा रयणप्पभापुढविनेरइए एवं जाव सबद्दसिद्धगदेवे ।। (सूत्रं २६३) 'रयणप्पभापुढवीनेरइया णं भंते !' इत्यादि सुगम, नवरं 'पद्धानि' सूचीकलाप इव सूत्रेण प्रथमतो बदमाप्राणि, तदनन्तरमग्निसंपर्कानन्तरं सकृत् धनकुट्टितसूचीकलापवत् स्पृष्टानि 'निधत्तानि' उद्वर्तनापवर्तनावर्जशेषकर Leseeeeeeeee अनुक्रम [५०५] ४०२॥ ~408~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy