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________________ आगम (१५) प्रत सूत्रांक [१९३] दीप अनुक्रम [४२३] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः ) - मूलं [१९३] पदं [१५], --------------- उद्देशक: [१], -------- दारं [-], [------- पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१५],उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः प्रज्ञापनायाः मल य० वृत्ती. ॥२९७॥ भंते ! चेइंदियाणं जिम्भियिकासिंदियाणं जगाहणद्वयाते पदेसयाते ओगाहणपदेसयाते कयरे२हिंतो अ० ४१, गो० ! सवत्थोचे बेइंदियाणं जिम्भिदिए ओगाहणद्वयाते फार्सिदिए ओगाहणट्टयाते संखेज्जगुणे पदेसट्टयाते सवस्थोवे बेइंदियाणं जिभिदिते पएसल्याए फार्सिदिए संखेज्जगुणे ओगाहणपएसइयाते सहत्थोवे बेइंदियस्स जिम्भिदिए ओगाहणट्टयाते फार्सिदिए ओगाहणडयाते संखेजगुणे फासिंदियस्स ओगाहयतिहिंतो जिम्मिंदिए परसट्टयाते अनंतगुणा फार्सिदिए एसए संजगुणा, बेइंदियाणं भंते! जिम्भिदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पं० १ गो० ! अनंता, एवं फार्सिदियसवि, एवं मउयल हुयगुणावि, एतेसि णं भंते! बेइंदियाणं जिम्भिदियफा सिंदियाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलडुयगुणाण कक्खडगुरुयगुणमयल हुयगुणाण य कतरे२हिंतो अ० ४१, गो० ! सवत्थोवा बेइंदियाणं जिम्भिदियस्स कक्खडगरुयगुणा फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अनंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चैव मउयलहुय० अनंतगुणा जिम्मिंदि महुयगुणा अनंतगुणा, एवं जाब चउरिंदियत्ति, नवरं इंदियपरिवुड्डी कातवा, तेइंदियाणं घार्णिदिए थोत्रे चउरिंदियाणं चक्खिदिए थोवे, सेसं तं चैव ॥ पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा नेरइयाणं, गवरं फार्सिदिए छबिहसंठाणसंठिते पं० तं० - समचउरंसे निग्गोह परिमंडले सादी खुज्जे बामणे हुंडे || वाणमंतरजोइसियमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं (सूत्रं १९३ ) 'नेरयाणं भंते!' इत्यादि सुगमं, नवरं 'नेरइयाणं भंते ! फार्सिदिए किंसंटिए पण्णत्ते' इत्यादि, द्विविधं हि नैरयिकाणां शरीरं भवधारणीयमुत्तरवैक्रियं च तत्र भवधारणीयं तेषां भवखभावत एव निर्मूलविलुसपक्षोत्पाटितस Education International For Parts Only ~ 198~ १५ इन्द्रि यपदे उद्देशः ९ ॥२२७॥
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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